SHibu Dabhde   (श्याम कि कलम)
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Shyam dabhde
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Joined 14 January 2018


Shyam dabhde
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17 JUN AT 1:18

ज़मीं पर कुछ रोज़ का मेहमान हो गया है,
जिस्म लगता है कि जैसे बेजान हो गया है,

हर कोई चला आता है फरमाइश लेकर,
शायर तो ग़म बेचने की दुकान हो गया है,

दरमियान लकीर है जो मिट नहीं सकती,
मैं रहा हिन्दुस्तान वो पाकिस्तान हो गया है,

पहले तो उसको कितनी जरूरत थी मेरी,
लगता है अब वो मुझसे परेशान हो गया है,

हर रोज़ कोई एहसास दफ़न हो जाता है,
दिल दिल ना रहा, कब्रिस्तान हो गया है।

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14 JUN AT 1:25

पंछी बैठा करते थे इस दरख़्त पर,
बच्चे झुला झुलते थे इस दरख़्त पर,

अब कांटों के सिवा कुछ भी नहीं,
पहले फूल लगते थे इस दरख़्त पर,

पत्ते भी सुख गए फल भी सड़ गए,
कितने घर पलते थे इस दरख़्त पर,

मिलते थे दो प्रेमी यहां छिपकर,
दोनों नाम लिखते थे इस दरख़्त पर,

हवाओं ने गिरा दिया इसको वरना,
लोग दुआ मांगते थे इस दरख़्त पर।

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13 JUN AT 1:34

कुछ फ़र्ज़ होते है, कुछ फ़र्ज़ निभाने होते है,
कह देने से नहीं होता,करके दिखाने होते है,

हर बात पर कितनी चलतीं है तुम्हारी जुबां,
मोहब्बत में जुबां नहीं होंठ चलाने होते है,

तुम्हारा हुस्न वज़ह है तुम्हारी मशहूरी का,
तुम्हें लगता है लोग तुम्हारे दिवाने होते है,

दिखावे वाले मिला करते है बागीचो में,
छिपाने वालों के कई ठिकानें होते है,

ये केफे, क्लब, हुक्का बच्चों कि जगह है,
मर्दों के लिए शहर में शराबखाने होते है,

कभी नज़र नहीं आते बस दर्द देते रहते है,
कुछ ज़ख्म ना बहुत ज़्यादा पुराने होते है।

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11 JUN AT 1:30

हर बात पर बहाना बनाने का मज़ा कुछ और है,
हाल-ए-दिल को छिपाने का मज़ा कुछ और है,

यूं तो मालूम है भरोसे के काबिल कोई भी नहीं,
मगर जानकर आजमाने का मज़ा कुछ और है,

मन भी नहीं करता जिनसे कि हाथ मिला लें,
ऐसे लोगों को गले लगाने का मज़ा कुछ और है,

समझ नहीं आता ख़ुश है, या ग़मज़दा है हम,
भींगी पलकें लिए मुस्कुराने का मज़ा कुछ और है,

क्यूं ना‌ रखीं हो सामने बोतल भरी शराब की,
मगर आधे भरे पैमाने का मज़ा कुछ और है,

उसकी शक्ल तो देखता नहीं कभी "शायर"
उसकी गली में आने जाने का मज़ा कुछ और है।

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10 JUN AT 2:18

सच बात ही ऐसी है कि सुन के जल‌ जाती है,
जुबां का काम है फिसलना, फिसल जाती है,

ख़ुद चुना है बर्फ़ और पत्थर में पत्थर होना,
बर्फ़ ज़रा सी गर्मी देखकर पिघल जाती है,

यूं तो मेरी बातों में शराफ़त झलकती है बहुत,
तुम्हें देख‌कर मुंह से गाली निकल जाती है,

बड़ा बुरा है किसी कि ज़रूरत लग जाना,
किसी कि आदत रहें आदत बदल जाती है,

शेर तो फिर जान लेकर खाता है जिस्म को,
इश्क़ वो नागिन है जो ज़िन्दा निगल जाती है।

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5 JUN AT 0:54

दिल वाले को समझने के लिए दिल लगता है,
अधूरा है ख़ुद में जो शक्ल से क़ामिल लगता है,

फिजूल है तुम्हारी मुझको समझने की कोशिश,
मुझको समझना मुझको भी मुश्किल लगता है,

कहता है वो मोहब्बत को ये खुबसूरत बला है,
मोहब्बत के मुआमलों में ज़रा जाहील लगता है,

यार‌ याद‌ दिला देता है जब उसे भुलना चाहु मैं,
मेरा यार‌ भी उसकी गिरोह में शामिल लगता है,

ज़माने को नज़र आता है वो कि खुबसूरत है,
बस हमको ही वो निगाहों से कातिल लगता है,

कौन किसका है दुश्मन कुछ समझ नहीं आता,
हमारा शागिर्द ही‌ हमको मुक़ाबिल लगता है।

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15 MAY AT 1:45

किसी शान्त दरिया में हमारा तैरने का मन करें,
बैठ कर किसी मयखाने में पीने का मन करें,

कोई तो ऐसी शब आए जिसमें तेरी यादें ना हो,
कोई तो ऐसा दिन आएं जब जीने का मन करें।

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11 MAR AT 19:20

वो चेहरा देखते रहता होगा,
जैसा मैं वैसे रहता होगा,

जिस शहर में वो रहता है,
वो शहर कैसे रहता होगा।

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31 JAN AT 1:38

तुमको थोड़ा सता कर गोद में सुला लेते,
करते थोड़ा परेशान फिर कहीं मना लेते,

तुम्हारा‌‌ जिस्म नहीं मोहब्बत चाहिए थी,
जिस्म ही लगता अगर तो घर से उठा लेते,

बिछड़ते वक़्त क्या हाल था क्या बताएं,
तुम रो‌ पड़ते अगर हमसे नज़रें मिला लेते,

मुआमला दिल का है हमारे बस में नहीं,
हमारे बस में होता तो किसी से लगा लेते,

दिल जज़्बात का बना था फिर ना बनेगा,
ईंटों का बना‌ होता तो नया बना‌ लेते।

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17 JAN AT 1:00

पहले खुशी फिर मलाल होता है, मोहब्बत के बाद,
हर आशिक का यही हाल होता है,मोहब्बत के बाद,

क्यों कभी पुरी नहीं होती किसी की सच्ची मोहब्बत,
हर दिल टूटे का ये सवाल होता है, मोहब्बत के बाद,

हमेशा मुस्कुराने वाले जो कभी रोएं ही नहीं फुट के,
उनकी भी जेब में रूमाल होता है, मोहब्बत के बाद,

जमाने में तो सब को सबक मिलते रहते है मगर,
जो मिले सबक बेमिसाल होता है,मोहब्बत के बाद,

कोई यार नहीं सुनता जिस शायर यार की शायरी,
वो शायर बहुत इस्तेमाल होता है,मोहब्बत के बाद।

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