बाद मुतामरिद कालीमत
इहदात दजीज फी अलिकल
बी मसलाह तिल आलम
असमाहु ली अन उत्लीक सराहाहुम
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Shibani Ajgaonkar
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Joined 1 September 2019
8 HOURS AGO
10 JUL AT 19:14
उस खुशनुमा शाम का
इंतज़ार करती हूँ
कुछ बादल होंगे
कुछ बारिश होगी
और कुछ कुछ तुम-
10 JUL AT 17:06
अंधेरा ही रोशनी की
झूठ ही सच की
ग़म ही खुशी की
पहचान है
एक के बिना
दूजा नहीं
ना होना ही
होने की पहचान है-
10 JUL AT 10:46
ये जो दो लकीरें हैं ना
तेरी आंखों पर काजल की
लगता है मेरी दुनिया
इनमें ही सीमित है-
10 JUL AT 0:46
मशहूर होना होता
तो कागज़ कलम से लिखते
पत्तों से लिखते हैं हम
हवाओं पर-
9 JUL AT 18:32
ये जो दो लकीरें हैं ना
तेरी आंखों पर काजल की
लगता है मेरी दुनिया
इनमें ही सीमित है-
9 JUL AT 13:00
ताज़ा महक है
जाऊं क़रीब तो
लब से छु लूं
तो मन भर जाता है
उसके होने से ही
मेरे ग़मों का हल है
मैं चाय को
माशूक़ नहीं
तो और क्या कहूं-