तेरा लौटना तय था
या
तू कही गुम था।
मैं आई तेरे शहर से तन्हा रूठ कर
तेरा मुझको यू ख़्वाबों में मनाना तय था।
मैं चौखट पे रही तेरी राह देखते
क्या तेरा - मेरा दुनियां से परे मिलना तय था।
मैं रोती नहीं मुसीबतों पर
तेरा मुझको यू प्रेम में रुलाना तय था।
आओ तन्हा तो सुनाऊं कुर्बत की कहानियां
शहर की भीड़ नहीं सुनती प्रेम कहानियां। 💌
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(MĘŔÁĶĬ)
मुझे उसकी आँखें, उसकी मुस्कुराहट देखनी है,
मेरी मोहब्बत को जिससे मोहब्बत है,
मुझे उसकी मोहब्बत देखनी है।
(२२/५/२०२०)-
अक़ीदत था
फ़ासले में भी मिला करते थे
ज़मी से बारिश भी
हसरत से मिला करते थे।
बात हुई ज़माने गुजरे
वक़्त मिले ना मिले
हम कितनी सहूलत से मिला करते थे।
बैठ कभी रू- ब- रू
वादा निबाह का तुम्हें याद दिलाऊं।
बार - बार उठना ये निगाह -ए -शौक़
निगाह -ए - शौक़ का शोक याद दिलाऊं।
याद दिलाऊं दिल -ए -गज़ल
गज़ल से लिखी दिल-ए-क़िस्सा याद दिलाऊं।
ज़मी से मुड़ आसमां का सफ़र
राह -ए - मंजिल तुम्हें याद दिलाऊं।
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कुछ इस तरह उसने मेरा जाना मुश्किल किया
जानाँ कह कर मेरा जाना मुश्किल किया!-
प्रेम द्वारा भेजे गये पत्र
सँभाल कर रखे गये,
केवल, पत्र नहीं
प्रेम सँभाल कर रखा गया
प्रेम में बंधे शब्द,
शब्द से बने वाक्य,
वाक्यों को पढ़ कर प्रेम में गिरे
अश्रु सँभाल कर रखा गया
तत्पश्चात आधुनिकता की
खटखटाहट से
डिलीट कर दिया गया
प्रेम।-
ज़िंदगी की दु:खद घटनाएं
लिख कर बंद कर दी गई
डायरी
शिकायत करती हैं,
सुखद स्मृतियां लिखी गई
डायरी से
जिन्हें रोज़ खोला,
और पढ़ा जाता गया।-
साल भर के फासले चलो आज कुर्बत में बीता लेते है
ये दिसम्बर की आख़िरी रात
एक साथ मुकम्मल कर लेते है
मैं नींद मुकम्मल ले आऊ
तुम ख्वाब मुकम्मल ले आना
और ये आख़िरी रात चलो एक साथ मुकम्मल कर लेते है-