Sherry Jain   (SherryTheWine)
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Joined 13 December 2018


Joined 13 December 2018
20 NOV 2023 AT 23:07

ये जो धीमी आँच पर
उबल रहा हैं
यह महज़ एक बात नहीं
जसबातों का लावा हैं
या शायद
आक्रोश है
मेरे हताश मन का

किसी गहरे ज़ख़्म सा,
किसी पुरानी याद का
जैसे अल्फ़ाज़ गुम हो
किसी अधूरी नज़्म के
बिखरा हुआ सा लगता है

मैं सब समेटना चाहती हूँ
सब सही से जोड़कर रखने
की चाह में
पर अब बहुत बरस बीत गये
सब बदल गया है
और अब साल ही नहीं
हम भी नये हो चुके हैं
देखो साफ़ है ना दर्पण
और चमक भी रहा हैं ।।

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15 JUL 2023 AT 20:04

धैर्य ही शस्त्र है, समय के इस प्रहार का
स्थिति यह विचित्र है अपने ही प्रकार की,
धीरज ही वो अस्त्र है, जो सह सके हर व्यवहार को
वक़्त अब विचारों नहीं, स्वीकारो प्रकृति के स्वभाव को
शांन्त चित, उत्तम चरित्र ही,
पहचान है राम के अवतार की
मर्यादा से हो बंधे, धर्म की कसौटी पर खरे ,
उस ही की तो जय जयकार है ,
कटु वाणी की धार पर, सभी तर्क निराधार है ,
स्वार्थ के व्यापार से सदैव रिश्तों की ही हार है
मंथन करो, चिंतन करो, निर्णय करो
चूँकि...यह शंखनाद की ध्वनि है ,
युद्ध का बिगुल नहीं
अंतःअस्ति प्रारंभः
यह आरंभ है
एक नई शुरुआत का ॥

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9 JUL 2023 AT 22:29

मन मस्तिष्क के मंथन में
कैसे चुनाव होय
जो मन को भाये
वो मस्तिष्क को समझ ना आये
जो उसकी सुनू
तो सूकून चला जाए ।।

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12 FEB 2023 AT 20:37

जो सत्य सा प्रतीत हो,
जो मन में उत्साह भरे।
जो स्वप्न से भी सुंदर हो,
जो वास्तविकता के निकट लगे।
जो प्रेम से हृदय को छले,
उस मृगतृष्णा से
आख़िर बता कैसे बचे ?॥

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26 NOV 2022 AT 23:22

जो अगर जवाबों में ताक़त होती
तो सवाल महत्वपूर्ण ना होते,
जो सवाल सब कुछ होते
तो भला जस्बात क्यों रोते ॥

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1 NOV 2022 AT 14:47

मन को तो मना भी लूँ
मगर दिमाग़ बेहद ढीठ हैं ॥

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9 OCT 2022 AT 7:22

अर्द्धविराम (;)

पर्याप्त हो, पर प्राप्त नहीं,
विश्राम है परंतु विराम नहीं।
सम्पूर्ण होने से ठीक पूर्व;
जहाँ हम खड़े हैं,
उसे ही अर्द्धविराम कहते हैं॥



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2 OCT 2022 AT 8:48

उलझन

सही ग़लत के तराज़ू में,
रिश्तों का हैं मोल क्या ?
तेरे हिस्से और क़िस्सों,
का बता हैं तोल क्या ?
पूर्ण रूप सा सत्य कहा,
तो इस बात का भूगोल क्या ?
ना प्रेम का अभाव ना कोई शिकवा,
फिर हैं ऐसा यह झोल क्या ?
जो ना हिल सके ना बढ़ सके ,
हैं वो अडोल वृक्ष सा निर्णय क्या ?
तर्क-संगत जो व्यर्थ प्रतीत हो,
तो हर अर्थ हैं गोल क्या ?
जो ठोस नहीं ,ना ही हैं वाष्प ,
फिर भला यह घोल क्या ?
जो महत्वकांशा से हो परे,
जो संयम वाणी पर धरे,
हैं भला यह बोल क्या ??

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2 OCT 2022 AT 0:07

Choose your compromises carefully
not everything can be blamed to
Circumstances!

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6 JUL 2022 AT 23:52

ज़्यादा
जो पर्याप्त से अधिक है , वो ज़्यादा
या जो दायरे से बाहर है , वो ज़्यादा
जिसे सहजता से स्वीकारा ना जाये, वो ज़्यादा
या जो सोचने में अटपटा लगे, वो ज़्यादा
जो स्वादानुसार से अत्यधिक हो, वो ज़्यादा
या जो असंख्य, अपार, अपरिमित हो, वो ज़्यादा
जो विचित्र विचारों का मिश्रण हो, वो ज़्यादा
या जो शून्य से भिन्न हो, वो ज़्यादा
जो सामाजिकताओं में ना बंधे, वो ज़्यादा
जो विवश करे, मुश्किल लगे,
जो बेहद लगे या बदलाव करे , वो ज़्यादा
या जो क्रांति का आग़ाज़ करे,
लहरों को निडर पार करे, वो ज़्यादा
आखिर कौन तय करता है

यह " ज़्यादा" !!

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