यादों की परछाई में,
ज़हन की गहरायी में,
तुम रहते हो, सिर्फ़ तुम !-
बैठो उस महफ़िल में जहाँ न हो कोई फ़क़ीर,
ना, इतना छोटा मत रखना कभी अपना ज़मीर !-
ज़िंदगी के किस पड़ाव में हूँ मैं ?
बह रहा हूँ लहरों की कश्ती मैं मगर,
लगता है भँवर में फसी नाव में हूँ मैं,
ख़ुशमिजाज़ रहता हूँ मगर
क्यों लगता है तनाव में हूँ मैं !
क्या है वो जिसके अभाव में हूँ मैं ?
जाने ? तुमसे दूरी के प्रभाव में हूँ मैं !-
अंतरमन में तेरे शोर चीखता,
और बाहर खोजता शांति है,
जानता नहीं तू या जानना नहीं चाहता?
ऐसा जीवन महज़ एक भ्रान्ति है !-
बादलों की असीम चादर पर,
अनगिनत ख्वाब पैर पसारें,
वो जीवन की उड़ान ही क्या,
जो आसमां में न गुजारे !-
पिरोता जा रहा हूँ ये लम्हे,
अपने तज़ुर्बों की लड़ी में,
कब किससे सीख मिल जाए,
जाने कौन घड़ी में !-
कि
मुश्किलों को मुश्किल समझते-समझते,
हम और मुश्किलें बढ़ा देते हैं !-
रिश्तों की डोर होती है नाज़ुक बन्धु,
जितना मैंने अनुभवों से सीखा है,
रेत सा समय फिसल रहा है हाथ से,
क्या भरोसा कल का, भला किसने देखा है !
झुकने में क्यूँ घबराए भला हम,
जब अकड़ने में कमर नहीं दुखती,
रिश्तों की उम्र बढ़ जाती है झुकने से ,
और किसी की लम्बाई भी नहीं घटती !-