फ़िक्र रहती थी मुझे तेरी, शायद जता मैं नहीं पाया,
खून से ज़्यादा अपनाया था तुझे, ये भी कभी बता न पाया !
स्वार्थ नहीं था तुझसे मेरा, तुझे कभी पर दिखता होगा,
मैंने तो कलम को छोड़ा तबसे, पर दिल मेरा तुझे लिखता होगा !
उदासी नहीं अब आती मुझमें, कि तुझसे मेरा कोई जोड़ नहीं है,
खुशियों के कुछ पल हैं काफ़ी, यादों पर कोई ज़ोर नहीं है !
तू खुशहाल रहे औ स्वस्थ रहे, इस उम्मीद पर मैं आज भी खड़ा रहता हूँ,
खबर नहीं रहती मुझे तेरी कोई भी, बस फ़िक्र में कभी पड़ा रहता हूँ !
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