Sheetal Maheshwari  
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Joined 13 December 2016


Joined 13 December 2016
30 SEP 2020 AT 22:02

आप कहे तो
कह न सके आप जो
बनकर हवा गुजर जाऊंगी
बस एक ख्याल ...
तेरे जीने का सबब ..
एक फूल रजनीगन्धा सा
मेरी यादों का
तेरे ख्वाब की धड़कन
बन जाऊंगी

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19 MAY 2020 AT 23:33

एक लावा बह निकलेगा
जल उठेगी फिर से
यादों की ज़मीं
जिसकी परतों में
हैं छुपी
कुछ एहसास
फूलों की नमी से
कुछ तल्खी लिए
लफ्ज़ अंगार से
बस रहने दो मुझे
सुकून के साथ
मत कुरेदिए ...
न कुरेदिए
अब वह सुलगती बुझती राख



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14 FEB 2017 AT 17:06

तितलियों के पंखो पर
भेजा हर कली और फूल ने
ये प्रेम भरा सन्देश
हर दिल में ...
छलकती रहे .....
प्रेम की गागर
और सुरभित रहे
मेरा देश

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22 JAN 2017 AT 21:31

धरती माता कहे
प्रेम की फसल उगाओ
मिलकर सब पकाओ
खाओ और खिलाओ

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2 JAN 2017 AT 22:38

रात के समन्दर में
तैरती अनगिन तारों की कश्तियां

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8 JAN 2021 AT 19:52

ठौर की
तलाश में
तैरते रहे
कभी इस पार
तो कभी उस पार
भीगते रहे
गलते रहे
मिटते रहे
इन सूनी सूनी
अंखियों के
साहिल के पास
फिर भी सफर
करते रहे
कागज की कश्तियों में
मंजिल की तलाश में
ये भटके हुए से
खोए खोए से ख्वाब




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12 DEC 2020 AT 21:18

व्यस्त
बहुत ही
रहस्यमयी और तिकड़मी
लफ्ज़ है ये
अपनी ही पेचीदगियों में
फंस जाता है
और फिर
चारो और
ढूंढता है एक किनारा
किसी ख़ामोश ज़मीन पर
टकटकी लगा देखता है
ऊपर टंगे आसमान में
एक अधपका सा बीता पल
जिसे पा लेने कि
ख्वाहिश में ....
फिर अपने चकरी लगे पहियों से
दौड़ कर जाता है
क्षितिज के एकदम पास
तोड़ने वह अधपका सा पल
फिर अपनी ही पेचीदगियों के
चक्रव्यूह में फंस कर रह जाता है
बुदबुदाता है अपने ही मन में
चलो छोड़ो जाने दो
फिर करेंगे कोशिश
अभी तो अपने ही लफ्ज़ की
आपाधापी से ग्रस्त हैं
क्यूंकि अभी तो
हम बहुत व्यस्त हैं
अभी तो हम बहुत व्यस्त हैं

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19 NOV 2020 AT 15:07

तेरी लंबी
खामोशी को देख
निकल जाती हूं
मैं भी एक
लंबे मौन सफर पे

खोती हूं
तो कभी पाती हूं
खुद को
यादों के वीरान जंगल में

वक्त की इस रेल पेल में
तेरे ख्यालों के मेले में
तुम्हारे संग होकर भी
तन्हा हूं मैं

पढ़ती हूं
वह अहसास
वह अल्फ़ाज़
उन खतों के
जो वक्त की
मुठ्ठी में कुम्हला तो गए है
मगर अभी भी
कहीं ज़िंदा है
मेरे मन के तहखाने में

और तुम कहते हो कि
मुझे तुम्हारी कद्र नहीं!












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24 OCT 2020 AT 22:59

बड़े लंबे अरसे बाद
फिर लिखने लगी हूं
ज़िन्दगी की किताब
कुछ खाली पन्ने
फिर भी छूट जाते हैं
काश कि तुम भी होते
तो उन खाली पन्नों पर
तुम्हें उकेर देती
बना कर के यादों के
सूखे गुलाब से
बिखरते अल्फ़ाज़





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20 SEP 2020 AT 17:21

हिंदी का आंचल
कभी महकता
कभी कुम्हलाता
कभी सितारों से टंक जाता
तो कभी कंटीली झाड़ियों में उलझ जाता
कभी किसी के ह्रदय की
धड़कन बन जाता
तो कभी दो दलों की
रस्साकसी का साधन बन जाता
फिर एक दिन वही आंचल
किसी संदूक मेे तह कर
अगले हिदी उत्सव के लिए
रख दिया जाता

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