ठौर की तलाश में तैरते रहे कभी इस पार तो कभी उस पार भीगते रहे गलते रहे मिटते रहे इन सूनी सूनी अंखियों के साहिल के पास फिर भी सफर करते रहे कागज की कश्तियों में मंजिल की तलाश में ये भटके हुए से खोए खोए से ख्वाब
व्यस्त बहुत ही रहस्यमयी और तिकड़मी लफ्ज़ है ये अपनी ही पेचीदगियों में फंस जाता है और फिर चारो और ढूंढता है एक किनारा किसी ख़ामोश ज़मीन पर टकटकी लगा देखता है ऊपर टंगे आसमान में एक अधपका सा बीता पल जिसे पा लेने कि ख्वाहिश में .... फिर अपने चकरी लगे पहियों से दौड़ कर जाता है क्षितिज के एकदम पास तोड़ने वह अधपका सा पल फिर अपनी ही पेचीदगियों के चक्रव्यूह में फंस कर रह जाता है बुदबुदाता है अपने ही मन में चलो छोड़ो जाने दो फिर करेंगे कोशिश अभी तो अपने ही लफ्ज़ की आपाधापी से ग्रस्त हैं क्यूंकि अभी तो हम बहुत व्यस्त हैं अभी तो हम बहुत व्यस्त हैं
बड़े लंबे अरसे बाद फिर लिखने लगी हूं ज़िन्दगी की किताब कुछ खाली पन्ने फिर भी छूट जाते हैं काश कि तुम भी होते तो उन खाली पन्नों पर तुम्हें उकेर देती बना कर के यादों के सूखे गुलाब से बिखरते अल्फ़ाज़
हिंदी का आंचल कभी महकता कभी कुम्हलाता कभी सितारों से टंक जाता तो कभी कंटीली झाड़ियों में उलझ जाता कभी किसी के ह्रदय की धड़कन बन जाता तो कभी दो दलों की रस्साकसी का साधन बन जाता फिर एक दिन वही आंचल किसी संदूक मेे तह कर अगले हिदी उत्सव के लिए रख दिया जाता
रौशन,ख्यालों से... जब दोस्ती हो किताबों से रूबरू, होते है खुद से जब दोस्ती हो किताबों से संभाल लेती है, गिरने से जब दोस्ती हो किताबों से मिलन,ख्वाबों का ख्वाब से जब दोस्ती हो किताबों से