दिन, महीने, साल तो याद नहीं
पर एक अरसे बाद, एक लम्हा आया,
मैंने कहा चलो आया तो सही||
थोड़ा ठहर के उसने पूछा, क्या हुआ?
थोड़ा संभल के मैंने कहा, दिल टूट गया
कहती, चलो टूटा तो सही||
मेरी नम आँखें और बंद होठों ने कहा,
मज़ाक नहीं है, धड़कनें धीमी पड़ जाती हैं
मैंने धक -धक की रफ़्तार को महसूस किया है||
उसके मुस्कराते लबों ने कहा,
तज़ुर्बा है, धड़कनें धीमी तो नहीं
पर शायद कहीं थम सी जाती हैं
जैसे कुछ पीछे छूट गया या कोई पीछे छोड़ गया है||
फिर, चेहरे पे अजीब सी रौनक
और अंदर कुछ "धक" से आवाज़ आयी,
दिल जोर से उछला और भागते हुए बोला
चलो, दिलजले को दिलजला मिला तो सही||
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