उस रात सबका खाना मेरे घर पर ही था.
तेज बारिश हो रही थी,
रात भर पानी बरसता रहा,
सब यहीं रुक गए,
रात भर बातें हुई,
वो चुप खिड़की के पास बैठी रही,
ठण्ड भी थी,
अगली सुबह सब चले गए घर सुना हो गया.
झूठे बर्तन, एक आधी रोटी,
आधा भरा कांच का गिलास, उस पर लिपस्टिक के निशान. और वो महक.
सब वैसा ही पड़ा रहा, मै काम पर चला गया.
और रात को जब काम से लौटा
खिड़की के पास दीवान् पर चादर वैसी ही सिमटी पड़ी थी एक कुशन दीवाल से टिका था. उस रात मै सबकुछ वैसा ही छोड़ बिना कुछ खाए उन्हीं कपड़ों में उस दीवान पर ही सो गया.
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यदि आज मेरे जीवन का अंतिम दिन हो...तो
तो सर्वप्रथम मै अपनी माँ से मिलूंगा
उसके पास तनिक बैठ लूंगा
तनिक करूँगा उससे प्यार
पूछूंगा वह स्वप्न जो उसने देखा है मेरे लिए
उनको भर लूंगा अपने ह्रदय के मध्य में
यदि आज.....
अपनी पत्नी से करूँगा उसके मन की बात
ना कर पायी होंगी जो कभी वो
मेरे व्यर्थ के व्यस्ततम हास्यरहित दिनचर्या के मारे
प्रयत्न वो करूँगा जिससे वो दिल खोल कर हंस दे और हँसते हँसते टिका दें अपना मस्तक मेरे कन्धे पर
यदि आज मेरे जीवन का...
तो मै अपने पुत्र को गले लगा कर
उसकी सुगन्ध लूंगा
सुनलूंगा उसकी ह्रदय ध्वनि को
बसाउँगा इन सब अनुभवों को अपने उर में
यदि आज मेरे जीवन....
तो मै अपने स्वामी को कर याद
और उसके द्वारा प्रदत्त कार्यों को पूर्ण करने हेतु
आरम्भ करूँगा अपने जीवन का उत्कृष्ट प्रदर्शन
अपनी उच्चतम ऊर्जा श्रोत से जो कि दौड़ रही है अब मेरे रक्त में
और आज के दिन को अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिवस बना दूंगा जो की एक उत्सव में बदल जाएगा
यदि आज मेरे जीवन का अंतिम दिन हो तो....
शीतल
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Kai raaton se jaga mai
Thak kar choor pada tha
Khoon pasine me lathpat
Aur ek kisi ki aawaz me
Vo, uska naam tha
rooh uthi,
Aur chalne lagi
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Mom Tum Yahan Ho Nahin
Pops ki tabiyat bahut kharab hai
Bata rahe hain heart Mein blockage hai
Ye log cal Subah papa ko Delhi le Aaye The
Aaj Subah mein bhi Delhi pahunch gaya
Raat ko hi train me baith gaya tha
Subah kab Hogai pata hi nahin chala
Main so gaya tha. Thak jata hun
Naukari theek thak chal rahi hai
Cook roj akar khana banaa jata hai
Ham Sab Ek Hotel Mein Ruke Hain
Din Mein ye log so gaye the
Maine swiggy se khana Manga Kar kha liya tha
Ab To jaise Bahar Ke khane ki Aadat Si pad gai hai
Magar Mujhe vo khana Achcha Nahin Lagta
Tum To Aisi Gayi Mummy ki ab aa bhi Nahin paogi
Chalo koi baat nahin Apna Khyal Rakhna
Aise hi FIR kabhi baat kar lunga
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Ghar ke Raste Mein
Jo flyover padta hai
Tum roz Mujhe
us par Mil jati Ho
Jab badhta hun uski unchai par
To Tum pass aati jati ho
utarta hu dhalan par
tum door ho jati ho
flyover ki unchai per
Ek Pani Ki Tanki hai
Jab vo bhar jati hai
To tej hawa me
pani ki bauchar
Gujarte logon par padne lagti hai
Auron ka to pata nahi
Lekin uski har boond me tum
mujhe choo jati ho
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एक अनजान
आईलैंड
सफ़ेद रेत
हरा पानी
दूर दूर तक
नारियल के पेड़
तुम
ब्लैक स्कर्ट
वाइट शर्ट में
पानी की लहरें
आती हुई, जाती हुई
तुम्हारे पैरों से रेत फिसलाती हुई
और मै दूर रेत पर,
तुमको देखता
यह सब लिखता हुआ
एक तरफ मेरी पसंदीदा किताबें
कुछ खाली कैनवास
कुछ एक रंग
जैसे पीला लाल नीला
हरा हम येलो और ब्लू को मिक्स कर के बनालेंगे
आने वाला समय
ऐसा ही है
मै अपनी रातों में अब वो करता हुँ
जो वो अपने दिन में नहीं करते
हम ये जरूर करेंगे
तुम देख लेना.
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आपके सम्मान में उठ खड़ा होना
अच्छा लगता है मुझे
उस बड़े सोफे पर सिकुड़ कर बैठना,
आपकी बातें सुनना,
अच्छा लगता है मुझे
और जब आप भूखी हो जाती हो
तो, कभी मरीजों पर कभी वैशाली पर
आपका गुस्सा कर तेज तेज बोलना
बहुत ही अच्छा लगता है मुझे,
आपका ब्लैक कफे के लिए पूछना,
कफे ना होने पर सूप माँगाना,
मेरे जाने पर
मुस्कुराना
अच्छा लगता है मुझे
आपके लिए बार बार,
आपके सम्मान में उठ खड़ा हो जाना
और आपका बार बार मना करना,
बहुत बहुत अच्छा लगता है मुझे.
मेरे मन में आपके लिए अथाह सम्मान है.
डॉक्टर मैडम प्रीती गुप्ता जी के लिए.
शीतल
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Subah ke 5 baje the,
Hawa tej thi,
Sukhe patton ki kharkharahat thi,
Lambi imarten,
Unki jalti battiyan,
Tum sapno me
Aur vo shaher,
New york.
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वो कहती थी
"मन का हो तो अच्छा,
और ना हो,
तो और भी अच्छा"
हम कालोनी में
अपनी मिलने कि जगह पर थे.
पानी की टंकी भर चुकी थी.
उस से सब ओर से पानी एक झरने जैसा झर ता रेहता था,
वैसा ही आज भी झर रहा था.
हवा तेज़ थी पानी की तेज बौछारें
हम पर पड़ रही थी.
इंदु ने अपना मु रो रो कर भींगो लिया था.
चेहरे पर काजल फैला हुआ था.
मै उसी की कही बात से उसे धारस बंधा रहा था
वो मेरे सीने पर अपने हाथों को पटक रही थी
रो रो कर अपना मू भींगो रही थी
मै कह रहा था, तुम ही तो कहती थी
मन का हो तो अच्छा
ना हो तो और भी अच्छा
यह सुन वो मेरे सीने में खुद को छुपाए रोने लगी
और मै खाली आकाश की ओर देखता रह गया
मन का हो तो अच्छा, और
ना हो तो और भी अच्छा
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आज तुम्हारे घर मे,
जब तुम्हारा ख्याल चला आया,
तुम्हारे बुद्ध, तुम्हारे पेड़, तुम्हारी किताबे,
और वो तुम्हारी खूब सारी बातें
तुमने जो बनाया अपना सौरमण्डल,
जिस पर खोजा तुम्हारा नाम,
जो कि ना था.
इन सब का जिक्र हुआ,
और कई बार तुम्हारा नाम आया,
लेकिन
इन सब के बीच आज तुम कहीं ना थीं ,
आज उस घर मे,
जब तुम्हारा जिक्र चला,
और इस बार तुम कहीं और थीं.-