Sheena Bhati   (शीना भाटी)
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Joined 31 December 2020


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7 SEP AT 0:23

पूरा दिन गुजरने के बाद रात होते होते
ज़िंदगी के दुख दर्द घेर लेते हैं।
क्या खोया, क्या पाया की सूची में
खोने का दर्द बेइंतहा हो जाता हैं।
कितने सारे मोह के बंधनों से बंधा मन
अपनों को खोकर उदासीन हो जाता हैं।
एक आस और एक काश
बस इन्ही दो शब्दों में उलझकर
दिन कट जाते हैं और
ज़िंदगी गुज़र जाती हैं।
कुछ घाव कभी नहीं भरते
मग़र मन भर जाता हैं।
लोग ज़िंदा रहते हैं,
मन मर जाता हैं ।

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10 AUG AT 19:47

बच्चे आपका जैसा ‘सलीक़ा’ देखते हैं वैसा ही सीखते हैं।
कौन किसके साथ कैसा व्यवहार करता हैं, ये सभी बातें
घर में बड़े होते बच्चों को सबकुछ सिखा रही हैं।
social behavior यानी कि सामाजिक व्यवहार और
ज़िंदगी जीने का ‘सलीक़ा’ बच्चों को अलग से नहीं सिखाना पड़ता हैं,
वे माता पिता को देखकर अपने आप सीख जाते हैं।
कैरेक्टर यानी कि चरित्र भी बच्चे अपने वातावरण से ही सीखते हैं।
अगर आप गुस्सैल है तो बच्चा भी चिड़चिड़ा होगा,
अगर आप नशेड़ी हैं तो बच्चा भी नशा करना सीख लेगा।
जैसा आप अपने माता पिता के साथ व्यवहार करते हैं,
प्यार से इज्जत से या गुस्से में, तो बच्चा भी आपके साथ वैसा ही करेगा।
हम सभी एक दूसरे से व्यवहार का ‘सलीका’ सीखते हैं,
असल में अलग चेहरा, व्यवहार में अलग चेहरा रखेंगे तो
आपका बच्चा भी बिल्कुल ऐसा ही होगा, और
आजकल के बच्चे तो इतने एडवांस हैं कि जैसे आप हो,
आपके बच्चे उससे दो कदम आगे होंगे।
अपने आसपास नज़र दौड़कर देखोगे तो पाओगे कि
कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांशतः यही होता हैं।

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9 AUG AT 6:54

समय हमेशा
एक-सा
नहीं रहता हैं
जो कल था
वो आज नहीं हैं,
जैसा आज है
वैसा
कल नहीं होगा।

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8 AUG AT 21:28

वक़्त चाहे जितनी परीक्षा ले
मगर नेकी पर बने रहना तुम,
अपने स्वार्थ के कारण
किसी का बुरा न करना तुम,
भले दुख झेलना पड़े मगर
ईमान कभी मत खोना तुम।

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8 AUG AT 21:25

मुश्किलों से जूझकर,
मन के घाव छिपाकर,
बुरे वक्त के बावजूद
दिन रात एक कर
अडिग रहते हैं जो
अपने लक्ष्य पर,
रंग लाएगी मेहनत
एक दिन उनकी, तब
खिलेंगे खुशियों के फूल
महकेंगा घर आँगन,
हो जाएगा दुखों का अंत,
भर जाएँगे मन के घाव।

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29 JUL AT 18:34

ज़िंदगी
धीमे ज़हर-सी
आहिस्ता-आहिस्ता
मौत की तरफ़ ले जाती हैं।
इंसान को भ्रम होता हैं
कि वह जी रहा हैं,
मगर असल में
वह मर रहा होता हैं।

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29 JUL AT 14:44


हर व्यक्ति ज़िन्दगी जीने की
कोशिशें करता हैं,
मगर घर की जिम्मेदारी,
रोजाना काम का बोझ,
ख़ुद के लिए समय नहीं,
दूसरों के लिए जीने को मजबूर,
ख़ुद की कोई ज़िन्दगी नहीं,
रोजाना सुबह उठकर काम पर जाना,
थक हार के आना,
फिर किसी काम में लग जाना,
कभी बीमारी तो कभी कोई और परेशानी,
हालतों से लड़ते लड़ते हिम्मत खो जाती हैं,
ज़िंदगी धीरे धीरे धीमा ज़हर हो जाती हैं।

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23 JUL AT 22:57

एक औरत अपने सारे रिश्ते
सँभालकर रखती है
लेकिन आदमी को उसके
सारे रिश्तों से दूर कर देती हैं।
हर इंसान में इतनी समझ होनी चाहिए
कि अपनी नज़र से रिश्तों को देखे,
न कि औरत के कहने भर से
सच को झूठ और
झूठ को सच मान ले।

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18 JUL AT 22:20


चाहने वाले
मिल नहीं पाते।
साथ रहने की
चाह रखने वाले
मिलों दूर रहने को
मज़बूर होते है।
साथ जीने की
कसमें खाने वाले
पहले प्यार को खोते है।
अनचाहे बंधन को
ताउम्र ढोते वाले
अंदर ही अंदर रोते हैं
“समाज के दायरे”
कितने दुखदाई होते है।

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18 JUL AT 22:09

दुनिया में हर कोई अपने हिस्से की ज़िन्दगी जीने आया है, इसलिए
सबको इस लायक़ बनना चाहिए कि अपनी जरूरतें पूरी कर सकें।

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