कुछ उधारी सा बाकी हूँ सभी में मैं..
बचाना चाहूँ भी तो खाली हाथ रह जाता हूँ...
फिर चाहे वो...
"हिसाब हो, घर हो,दोस्त हों या फ़िर रिश्ते"-
शब्दों का रंगरेज़
(©शब्दों का रंगरेज़)
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लखनऊ के आस पास के वासी,
चाय का दी... read more
लखनऊ के आस पास के वासी,
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Joined 26 April 2018
27 JUN AT 10:21
26 JUN AT 11:00
Once zakir bhai said...
झूठे है वो लोग जो कहते हैं आदमी रो नही सकते...
"पूछने वाला होना चाहिए रे"।।।-
25 JUN AT 9:55
एक पन्ने पर उलझे से शब्द बिखरे हुए हैं...
बेतरतीब लिखावट... अधूरे लफ्ज़...
फिर दरवाज़े पर एक ज़ोर की दस्तक...
उन उलझे लफ्ज़ो से लिपटा हुआ सख्श...
अब पशो-पेश है दिल ओ ज़हन में...
शब्द पढ़ा जाए...या सख्श पढ़ा जाए।।।-
3 JUN AT 9:34
ये तो बस खिड़कियों को ही मालूम होता है... बारिशों के बाद चिडियों की चहचहाहट, एक भीगी हुई सड़क, कुछ एक भागती हुई जिंदगी...
और खिड़की के उस पार की आज़ाद दुनिया।।।-
10 APR AT 11:54
एक आईना हो तुम...
पर पारदर्शी नही...
कुछ छवियाँ जो तुम्हारे लिए दुनिया ने बना रखी हैं...
तुम बिल्कुल भी वैसे नही हो...
जो सोच तुम्हारे लिये दूसरे रखते हैं...
उस सोच के जिम्मेदार तुम नही हो।।।-