Shazia Javed   (© Shazia Javed)
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Joined 21 July 2018


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Joined 21 July 2018
3 SEP 2022 AT 19:51

हैं रात गहरी और अंधेरा,
अब मिल भी जाए मुझको सवेरा।
चल रही हूं और चलूंगी,
एक आस है एक प्यास है।
मंज़िल की मुझको तलाश है
दिल को अपने है संभाला
यह लफ्ज़ हैं मेरा सहारा
छूटती है डोर जब भी
टूटती उम्मीद जब भी
हूं नज़्मों में ख़ुद को तलाशती मैं
इन लफ़्ज़ों के संग ग़म बांटती मैं
लिख‌के कुछ फिर मुस्कुराती
उम्मीद ख़ुद में मैं जगाती
माना कि शब है स्याह अभी
पर होगी सहर है यह यकीं
बस चल‌ रही हूं और चलूंगी
एक आस में एक प्यास मे

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20 JUN 2021 AT 21:59

सिर्फ एक दिन क्या काफी है बयाँ करने को जज़्बात अपने,
कैसे सिर्फ एक दिन में समेट दें सारे एहसास अपने।
हर एक दिन आपका होना एहसान है हम पर ,
बिन आपके इस ज़िन्दगी का न कर सकते हैं तसव्वुर ।
हैं जो आज वह आपने है बनाया हमको,
सिर उठा के जीना, है सिखाया हमको ।
नहीं दिन होगा कोई ऐसा कि बिन मेहनत के सोए होंगे,
कैसे कह दें एक दिन मे कितने ख़्वाब सजाए होंगे।
नहीं काफ़ी है एक दिन जो आप के नाम कर दें,
नहीं काफ़ी है एक दिन में जज़्बात बयाँ कर दें।

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4 JAN 2021 AT 13:58

चलो ' मैं' से निकलकर 'हम' बनकर देखते है,
दिल का हाल आँखों में पढ़कर देखते हैं।
ज़िंदगी शायद और ख़ूबसूरत बन जाए,
हाथ थाम इस सफ़र में साथ चलकर देखते हैं।

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19 DEC 2020 AT 18:40

ख़ामोशियों को पढ़ने का मज़ा ही कुछ और है,
आज ख़ामोश रहना है।
सहर को कह दो ज़रा देर रूक जाए,
रात के पहलू में कुछ वक्त बिताना है।
खिड़की पर हो खड़े चाँदनी को महसूस करने दो,
गुफ्तगू चाँद से कर राज़दार तारों को बनाना है।

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7 DEC 2020 AT 17:59

यूं करो औरों को ख़ुद से कम समझना छोड़ दो,
और उसे उसकी ही नजरों में गिराना छोड़ दो|

ज़रा ग़ौर ख़ुद पर भी करो और बात मेरी मान लो,
यूं दिल को न तोड़ा करो बिन सोचे न बोला करो |

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4 DEC 2020 AT 15:30

ख़ौफ़ तो अपनों से है, ग़ैरों से क्यूं डरा करें,
रंजिशें, शिकायतें और नाउम्मीदी आख़िर कैसे मिला करें ?

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2 DEC 2020 AT 17:19

कोई बेघर है घर की तलाश करता है,
जिसको मयस्सर है घर,
वह जा-ब-जा भटकता फिरता है|
इंसान की फ़ितरत भी कितनी अजीब होती है,
कितना भी मिल जाए पर कमी ही खटकती है|
सुकून की तलाश करता है ज़िंदगी भर,
अपने ही घर में न देखा कभी इक नज़र।
अंधेरी सड़कों पर उम्र भर वह फिरता है,
है चराग़ घर में पर रौशनी न करता है।

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19 SEP 2020 AT 10:29

बात तुमको करनी थी सच की, पर सच कहाँ अब सच रहा,
कुछ हकीकत कुछ हिकायत, को मिला तुमने कहा|
मुंसिफ़ बन गए तुम, यूँ फ़ैसला तुमने किया,
सुन रहे थे जो सभी, कि सच उन्हें लगने लगा|

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31 AUG 2020 AT 13:16

मुख़्तसर है ज़िन्दगी ख़ामोश क्यों गुज़ारते?
दिल की बातें दिल में रख,
क्यों मुश्किल में ख़ुद को डालते?
भीड़ मे तन्हा खड़े तुम नहीं हो जान लो,
गर सताती उलझनें,
किसी अपने का हाथ थाम लो|

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24 AUG 2020 AT 9:00

यह ज़िन्दगी है, ज़िन्दगी में हर कोई अपना न होता है,
पर उन सभी में कुछ एक से,कोई ख़ास रिश्ता होता है|

दिल में जो हैं बातें छुपी, दिल ही में न रक्खा करो,
सब से नहीं किसी एक से, जो मन में है बोला करो|

यूं तो दिलों को तोड़ना , इंसान की है फ़ितरत बनी,
पर टूटे दिलों को जोड़ना, है असलियत इंसान की|

जो ग़म में हो कोई अगर , ग़म उसका आधा बाँट लो,
हो इंसान गर तो इंसान के, जैसे भी जीना सीख लो|

यह ज़िन्दगी है, ज़िन्दगी में हर कोई अपना न होता है,
पर उन सभी में कुछ एक से,कोई ख़ास रिश्ता होता है|

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