हैं रात गहरी और अंधेरा,
अब मिल भी जाए मुझको सवेरा।
चल रही हूं और चलूंगी,
एक आस है एक प्यास है।
मंज़िल की मुझको तलाश है
दिल को अपने है संभाला
यह लफ्ज़ हैं मेरा सहारा
छूटती है डोर जब भी
टूटती उम्मीद जब भी
हूं नज़्मों में ख़ुद को तलाशती मैं
इन लफ़्ज़ों के संग ग़म बांटती मैं
लिखके कुछ फिर मुस्कुराती
उम्मीद ख़ुद में मैं जगाती
माना कि शब है स्याह अभी
पर होगी सहर है यह यकीं
बस चल रही हूं और चलूंगी
एक आस में एक प्यास मे-
🎂 31 May
Live Love Laugh (3 L's Of My Life) ♻
Love to stay alone most of th... read more
भटकते फिर रहे थे हम तलाश में जिनकी,
वह कुछ कदम की दूरी पर ही मिल गए|
जो सुकूँ ढूंढता रहा दिल सारी उम्र
देखा लौट के उसी खाली मकां में मिल गए|
नींद आँखों से रिश्ता तोड़ चुकी थी सुनो,
उससे माँ के आँचल की छाँव में मिल गए|
ज़ीनत मेरे शहर की खो गई थी मगर,
चंद बच्चों की आज मासूम मुस्कान से मिल गए|
वक्त आता है हर किसी का ज़रा सब्र तो करो,
सितारे रात को आख़िर आसमां से मिल गए|
कितनी कश्मकश है इस ज़िंदगी के सफ़र में,
मुतमईन भी न हुए और मिट्टी में मिल गए|-
सिर्फ एक दिन क्या काफी है बयाँ करने को जज़्बात अपने,
कैसे सिर्फ एक दिन में समेट दें सारे एहसास अपने।
हर एक दिन आपका होना एहसान है हम पर ,
बिन आपके इस ज़िन्दगी का न कर सकते हैं तसव्वुर ।
हैं जो आज वह आपने है बनाया हमको,
सिर उठा के जीना, है सिखाया हमको ।
नहीं दिन होगा कोई ऐसा कि बिन मेहनत के सोए होंगे,
कैसे कह दें एक दिन मे कितने ख़्वाब सजाए होंगे।
नहीं काफ़ी है एक दिन जो आप के नाम कर दें,
नहीं काफ़ी है एक दिन में जज़्बात बयाँ कर दें।-
चलो ' मैं' से निकलकर 'हम' बनकर देखते है,
दिल का हाल आँखों में पढ़कर देखते हैं।
ज़िंदगी शायद और ख़ूबसूरत बन जाए,
हाथ थाम इस सफ़र में साथ चलकर देखते हैं।-
ख़ामोशियों को पढ़ने का मज़ा ही कुछ और है,
आज ख़ामोश रहना है।
सहर को कह दो ज़रा देर रूक जाए,
रात के पहलू में कुछ वक्त बिताना है।
खिड़की पर हो खड़े चाँदनी को महसूस करने दो,
गुफ्तगू चाँद से कर राज़दार तारों को बनाना है।-
यूं करो औरों को ख़ुद से कम समझना छोड़ दो,
और उसे उसकी ही नजरों में गिराना छोड़ दो|
ज़रा ग़ौर ख़ुद पर भी करो और बात मेरी मान लो,
यूं दिल को न तोड़ा करो बिन सोचे न बोला करो |-
ख़ौफ़ तो अपनों से है, ग़ैरों से क्यूं डरा करें,
रंजिशें, शिकायतें और नाउम्मीदी आख़िर कैसे मिला करें ?-
कोई बेघर है घर की तलाश करता है,
जिसको मयस्सर है घर,
वह जा-ब-जा भटकता फिरता है|
इंसान की फ़ितरत भी कितनी अजीब होती है,
कितना भी मिल जाए पर कमी ही खटकती है|
सुकून की तलाश करता है ज़िंदगी भर,
अपने ही घर में न देखा कभी इक नज़र।
अंधेरी सड़कों पर उम्र भर वह फिरता है,
है चराग़ घर में पर रौशनी न करता है।-
बात तुमको करनी थी सच की, पर सच कहाँ अब सच रहा,
कुछ हकीकत कुछ हिकायत, को मिला तुमने कहा|
मुंसिफ़ बन गए तुम, यूँ फ़ैसला तुमने किया,
सुन रहे थे जो सभी, कि सच उन्हें लगने लगा|
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मुख़्तसर है ज़िन्दगी ख़ामोश क्यों गुज़ारते?
दिल की बातें दिल में रख,
क्यों मुश्किल में ख़ुद को डालते?
भीड़ मे तन्हा खड़े तुम नहीं हो जान लो,
गर सताती उलझनें,
किसी अपने का हाथ थाम लो|-