कैसे टूट जाऊ में बिखरने का वक्त नहीं मेरे पास
पापा के अधूरे सपने पूरे करने है अभी तो
हिम्मत खोने की हिम्मत नहीं मेरे पास
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कितना आसान था ना मुझे भुलाना
बस कहना ही तो था
माफ़ कीजिएगा पहचाना नहीं..-
भुल गए तुम उन्हें कैसे जो हंसते हुए फांसी पर झूल गए
कैसे सुभाष की क्रांति, वीरों का बलिदान भूल गए
स्वाभिमान भुलाकर कहां से सीखी तुमने बेईमानी
आज़ाद तो हुआ देश मगर आज़ादी अब भी है बाक़ी।
मैं वो नाम नहीं जो मिट जाऊं तुम मुझे कब तक मिटा पाओगी
जितने जुल्म नहीं इस जग में,मैं उतने सहती जाऊंगी
देखना चाहूंगी मैं,कहां तक गिरती हैं तुम्हारी खुद्दारी
आज़ाद तो हुआ देश मगर आज़ादी अब भी है बाक़ी।
वो देखो मेहनत की लाश चलकर आईं
लगता हैं आज फिर किसी की जेब गर्म होने को आईं
जाने किस लालच की खातिर..बेची है अपनी ईमानदारी
आज़ाद तो हुआ देश मगर आज़ादी अब भी है बाक़ी।
न्याय की आस लिए जब अदालत गए
बस बदलती तारीखें मिली
अचानक कैसे बदला फैसला लगता हैं टेबल के नीचे रकम मिली
मां के ज़ेवर बेच दिए पुश्तैनी ज़मीन गिरवी पड़ी
वो बूढ़े मां बाप की चप्पल देखो घिस घिस कर हुई है आधी
आज़ाद तो हुआ देश मगर आज़ादी अब भी है बाक़ी।
प्रेम की भाषा आती नहीं, मैं विद्रोह का राग सुनाती हूं
माना शमशीर उठाई नहीं मैं कलम से क्रांति लाती हूं
भ्रष्टाचारियों पर देखो शब्दों के तीर चलाती हूँ
बताती मैं किसी का सुख बनता कैसे किसी की लाचारी
आज़ाद तो हुआ देश मगर आज़ादी अब भी है बाक़ी..
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वो कहते सच जानते हैं वो
अरे कोई समझाओ उन्हें
वास्तविकता से अनजान हम भी नहीं..-
कितना कुछ दे गया ये साल
नए दोस्त नए यार
मेरे नाम से मिला इतना सम्मान
कभी सोचा नहीं था उतना प्यार
कितना कुछ दे गया ये साल
अनजाने अनुभव अनजाने प्रभाव
हां माना थोड़ा रहा अभाव
पर सीखने को मिला भी बहुत कुछ
उड़ने को मिले पंख भी मुझको
पिंजरा छोड़ मिला खुला आसमान
जाने कितना कुछ दे गया ये साल
खोने को न था कुछ भी
पाया नया ज्ञान
सोच से परे मिला इतना मान
जाने कितना कुछ दे गया ये साल
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कितना खूबसूरत सा था ये साल
हंसी मुस्कान और दोस्त थे चार
न कोई गिला न ही शिकवा किसी से
मुसीबत की घडी में बन जाते सब ढाल
कितना खूबसूरत सा था ये साल
हंसी मुस्कान और दोस्त थे चार
अनजाने थे एक दूजे से जो
बनने लग गए वो अब जान
लड़ते भी झगड़ते भी करते खूब धमाल
हंसी ठिठोली के बीच वो अपनेपन का अहसास
सही गलत हर बात में रहते थे वो साथ
कितना खूबसूरत था ये साल
हंसी मुस्कान और दोस्त थे चार
चन्द्रिका सा रूप और उसमें समाया प्यार
डोनिका का गुस्सा और साथ में मीठा वार
दृष्टि की अठखेलियों में छुपा आंसुओं का सैलाब
और मनमौजी उर्वा के साथ मस्तियां अपार
कितना खूबसूरत सा था ये साल
हंसी मुस्कान और दोस्त थे चार
एक कमरे को बनाया अपना आशियाना
अनजान लोगों से बनाया छोटा सा परिवार
वो यारों का साथ वो मीठी तकरार
कितना खूबसूरत था ये साल
हंसी मुस्कान और दोस्त थे चार
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आई हूँ मैं ज़ख्म ताज़ा देखकर
सदियों से किताब में पड़े उस गुलाब को फेंककर
और उसी के सीने से लिपटकर रोई में बहुत
उसकी शर्ट पर लगे लिपस्टिक का निशान देखकर..-
हाथों में देख मेरे इश्क़ का जाम लिया
बिना तेरे मैने हाथ तेरा थाम लिया
और किसी ने पूछा मुझसे क्या है मोहब्बत
मैंने बस मुस्कुराकर तेरा नाम लिया..-
बुनती रहती थी कभी हसीन खयाल
सही गलत का न उमड़ा कोई जवाल
कैसे कर दूं बयां हाल-ए-दिल अपना
आज मन में उलझे हैं कई सवाल
पूछने को हैं मन में प्रश्न कई
कई बातें है जो बतानी हैं
न हक़ है ना बहाना कोई बात करने का
कुछ उथल पुथल सी है मन में
जैसे मच रहा हो कोई बवाल
आज मन में उलझे हैं कई सवाल..
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