नआसना ही रहा मेरा क्लब मुहब्बत से
हम मुत्तक़ी भी वो
जो रूमी से राज़ी के ओर हिज़रत किये !-
nahīñ visāl mayassar to aarzū hī sahī
बूतें भी लिहाज रखती है सिसकती हुई आवाजों का मुन्तज़िर
यह गलती हमारी हमने इंसानों से रहम माँगी !-
दिल लगा के देख लिया मुन्तज़िर
यहॉं दिलजोई के लायक कोई नही !-
कोई हमसे बाबस्ता हो कोई तो हमसे बात करे
किसी को तो रघबत हो कोई तो ख्याल करे
ये उलझनों में मुब्तला हुई जिंदगी ये पेशानियों की लकीरें मिटे
कोई तो हमे देखे कोई तो जुल्फें सवारे
ये किताबों की अलमारी से लधा जेहन ये मन्तिक ये फलसफे
कोई तो हो जो हमसे हमरा हाल पूछे कोई तो ये सवाल करे
गुज़रा है एक वक्त फ़क़त उसके इंतेज़ार में
मुन्तज़िर पे जो गुजरी कोई तो उसका मलाल करे
और ये तवील अंधेरा तोड़ चुका है मुझे
यारों कोई जुगनुओं को बुलावे कोई तो फरिश्तों को खबर करे ।-
बड़े सुकून की हैं उससे रघबतें
वो जिसके विसाल का कोई सवाल ही नहीं !-
बड़े सुकून की है उससे रघबतें
वो जिसके विसाल का सवाल ही नहीं !
ये मेरी लाचारी ये उसकी अता है
इसमें किसी को कोई कमाल ही नहीं !-
किसी का भी पूरा वक़्त मुझे मुयस्सर हुआ नही
मैं मुन्तज़िर तो हूँ
कोई मेरा मुन्तज़िर रहा नही !-
मेरा दरवाज़ा तो फक्त ज़ुलैख़ा ने बन्द किया
हाए इतनी फूटी किस्मत तो यूसुफ की भी नहीं !-
नींद उड़ा देती है ख्वाब मेरे
ए मुन्तज़िर
थोड़ी मधहोसी बुरी नही !-
नशीहतें भी हम ही को मिले जमाने से मुन्तज़िर
हम जो खुद को दरवेश समझते रहे !-