Hai nazar tere hi makan pe sb ki,
Khud khidki pe aa kr parda hataya na kr,
Main muddaton se janta hu aankhon ki baate
Chal jhuti.... Bahana bnaya na kr.....
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ज़र्रा - ज़र्रा महफूज रखा तेरी यादों का मैंने,
ज्यादा नहीं मेरी सासों पे हक तेरा आधा रखा मैंने....-
तुम बेवफ़ाई का जश्न मना लेना
मेरी बर्बादी पर रक़ीब का घर सज़ा देना,
जो तुम्हें एहसास हो जाए मेरी मोहब्बत का कभी
मेरी कब्र के सामने अपनी कब्र बना लेना...-
बाशिंदे जा चुके थे, कर सर - ज़मीं को अलविदा,
मैं खत लिखता रहा, ना जाने था किसका पता...-
चाँद को खबर कहाँ कि उसका रक़ीब आ गया है,
तू जितना मुझसे दूर है उतना ही करीब आ गया है....-
देखती हूँ चांद को तो
दूर तू होकर भी करीब सा लगता है,
यूँ तो बेशुमार है दौलत तेरे इश्क़ की
पर ये दिल तेरे बिन फ़कीर सा लगता है.....-
Main rahu ya na rahu
Tere shehr tak bhi na koi gam aaye,
Meri saanse beshak intazar krwale,
kholu aankhe jb bhi samne mera sanam aaye...-
कैसी कश्मकश रही कि,
दरिया-ए -दिल तालाब रह गया,
पर्दा हमारी आँखों से हटा,
चेहरा उनका बेनकाब हो गया....-
हम ने आंसूओं की कभी गिरफ्तारी नहीं की,
दिल दुखाया होगा जरूर, कभी गद्दारी नहीं की...-
ख़बर मिली कि इश्क़ में सताऐ गए है,
हम आज भी उसके आशिक़ बताऐ गए हैं....
अजी बदनाम तो हम हुए उसके नाम से
और हम ही मुज़रिम बताए गए हैं....
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