तुम कहानी लगते हो मेरी अनकही हर बात के इंतज़ार में कब से बैठे हैं तुमसे मुलाक़ात के। औऱ आजकल मेरे आँगन में ये रौशनी कैसी तुम चाँद लगते हो मेरी हर चाँदनी रात के।
हर एक मोड़ पर तुम्हारा इंतज़ार हम करते तुम्हारी शख्शियत पर ऐतबार हम करते सारी बातें फ़िज़ूल हैं इश्क़ की ये हम जानते हैं फ़िर कैसे मोहब्बत करते कैसे इज़हार हम करते।
एक आवाज़ आई है कुछ टूट गया क्या? छलकती तन्हाई है तुम्हारे चेहरे पर कोई अपना रूठ गया क्या? जो देखा था सपना जागती आँखों से तुमने कहीं पीछे छूट गया क्या? संभाल रक्खा था खज़ाना इश्क़ का कोई लूट गया क्या?