तुम कहते हो कि मैैंने तुम्हें मेरे बारे में कभी
बताया नहीं...
तुम मुझे कभी फ़ुर्सत से पढ़ो तो सही।-
'बेताब' तख़ल्लुस रखा है,
कोई शेर, ... read more
कौन पूछा करता है हाल मुतहम्मिल का, कि अब तो उसे अरसा हो गया इसी हाल में...
गोया दिल, चश्म, एहसास भी पत्थर कर दिये हों बीमार के परवरदीगार ने।-
ना ही कामयाबियाँ बहुत थी, ना बहुत लोगों से थी चाहतें...
पर दिल उदास इस कदर है, जैसे पूरी दुनिया जीत कर हार गया हो कोई।-
जब से दिल टूटा है उदास रहता हूँ मैं...
गोया इस से पहले सब मेरे मन का हो रहा था।-
मुझे शिकायत नहीं मेरे कल से कोई...
मैं हमेशा मेरे आज से ही हारा हूँ,
जिस से भी माँगा साथ सब देना तो चाहते थे...
पर किसी को आज फ़ुरसत नहीं थी,
मेरे हाथ से कोई मौका भी नहीं छूटा आज तक...
पर गर कल हाथ लग जाता तो वो बात ही और होती,
इसलिए अब मैंने कल में जीना सीख लिया है...
मैं अब या तो हर काम पहले ही कर लेता हूँ या एक रोज़ के लिए टाल देता हूँ,
तो कुछ इस तरह मुझे कल, आज और कल में ताल-मेल बैठाना आ गया है...
और आज से मेरी सब शिकायतें भी दूर हो गई हैं।-
पशेमन हो के रोता था मैं उसके प्यार की ख़ातिर...
ज़लालत भी उस दौर में मुझे अख़लाक़ियत से प्यारी थी।-
महफ़िल में बैठे कुछ लोग उम्मीद लगाए
बैठे हैं कि 'बेताब' लिखेगा तो मीटर के बाहर
थोड़े ना होगा...
इन्हें शायद मेरी ज़िन्दगी का, मेरे मिज़ाज का
कोई अंदाज़ा ही नहीं ।-
अमदन कौन ख़ुदग़र्ज़ यार के शहर से निकलता है...
पर जो लिखी हों नसीब में, उन राहों से बच कर कौन, कब तक चलता है।-
गर दुनिया है इक महफ़िल और मैं यहाँ मेहमान हूँ...
तो मुझे भी दो ना इजाज़त, कि जब मन भर जाए तो मैं उठ कर चला जाऊँ।-
क्यूँ कातक की अमावस की मैं बाट जोहूँ, क्यूँ फागुन के पूरे चाँद का मैं इंतज़ार करुँ...
जो हो जाए मुझे दरस तेरा, भर दूँ गगन मैं रंगों से, रोशन मैं हर एक चौराहा, हर बज़ार करुँ।-