हे मेरे युग के लेखक सुनो
कविता में जब भी लिखना तुम
पूरा का पूरा सच लिखना
भले कड़वा लगे
नीम के पत्ते या करेले सा
भले बदल जाएं स्वाद लोगों के
या भूलने लगें लोग अपनी प्रिय मिठास
लोगों की भृकुटी तन जाए
या
सरकारों के माथे पर बल पड़ जाए
भले तुम्हें झेलना पड़े अस्वीकार
या हो तुम्हारा देश निकाला
तुम पर हमले हों
या तुम्हें चढ़ाया जाए सूली।
तुम लिखना वैसे को वैसा ही
तुम कहना नंगे को नंगा ही
.......…..पूरी रचना कैप्शन में पढें....-
Docile lover......
diligent philosopher....
Published Writer..... "BAND LIF... read more
स्वार्थी न हो इंसान,तो कैसे न हो,
मजबूरियाँ सबकी हैं सबको जिंदा रहना है।-
अपने बुद्धि,विवेक और सामर्थ्य से परे
जीवन में कुछ फैसले उस अज्ञात सत्ता
या ईश्वर के मानकर सहर्ष स्वीकार कर
लेना चाहिए।-
देवत्व पाने के लिये हमने देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित कीं,
और इस तरह अपनी भावनाओं की जीवंतता को पत्थर कर दिया।-
सिकंदर....
तैंतीस साल की उम्र में,
दुनिया के एक चौथाई हिस्से को जीत,
सैकड़ों फौंजो को रौंद,
सारे पर्वतों को नाप,
समुद्रों की गहराई से लेकर,
विशाल मैदानों को समेट,
बदलकर दुनिया का भूगोल,
बनाकर खुद का एक महाद्वीप,
ले विश्वविजेता की ख्याति,
लूटकर दुनिया की दौलत,
मरा वह शक्तिवान सम्राट,
साधारण ज्वर से हो कमजोर।
अधूरी रह गई थी इच्छाएं,
नहीं पा सका अमर जीवन,
नहीं कर सका तृप्त वह मन,
मर गया किसी गरीब आदमी सा,
अपनी जय विजय को सोचता।
पूरी रचना कैप्शन में पढ़ें.…-
बहुत लिखा कवियों ने तुम्हें कि चाँद जैसी हो तुम....
बासी हो चुकी ये उपमाएँ....
मैं नहीं देखता तुम्हें किसी चाँद तारे या गुलाब में...
मैं देखता हूँ तुम्हें घर के उस छोटे से दीपक में जो अंधकार से लड़ता रौशन करता है मेरी दुनिया को।
मेरे घर के गमले का छोटा सा फूल जिसका महत्व भले दुनिया न समझे लेकिन जो मेरे लिए बढ़कर है दुनिया के उन तमाम गुलाबों से जो मेरी दुनिया मे नहीं।
जगंल के किसी कोने में खिले उस फूल सा जिसकी सुंदरता पर लिखी जा सकती हों ढेरों कविताएं रचे जा सकते हों महाकाव्य।
सूरज की निकली हुई पहली अनछुई सी किरण जैसी जिसके अंतरतम में बसती किसी विराट के सौंदर्य की प्रतिमा।-
रात का होना भी जरूरी है,
ताकि इंसान सो सके ओढ़ के चादर सुकून के बिस्तर में
सारी परेशानियों को कल के लिए छोड़ के
एक उम्मीद के साथ कि कल उठेगा सुबह और उठकर बदल देगा दुनिया को।-
घर की छत है दीवार है नीवं का पाया है।
बाप,बारिश में छतरी है धूप में छाया है।
बाप है तो दुनिया के सारे रिश्ते नाते हैं।
बाप नहीं है तो हर रिश्ता भी पराया है।
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न ही दुनिया समझती है न कोई ही समझता है।
बाप क्या होता है,बेटी ही समझती है,बेटा ही समझता है।-