कलयुग में जन्मे हो
धैर्य शब्द
कहाँ है आपके पास
समय मिले तो हि पढ़े
जनहित में जारी
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Shastri Kavi
Kapilbendresh@gmail.com
खुशी का एक तिनका
गमों के सागर को पार कर जाता है
इस दुनिया से काहे उम्मीद करना
सागर अपने धैर्य को निभाता है
Old book
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हवाओं में जलने वाले चीराग
दीये कि लौ...कुछ यूं समझाती है
तेल भी था तुझसे तो कम
क्या मेरी लौ में ईर्ष्या नजर आती है
Old book
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कठोर जीवन को निभाना
हि जिन्दगी है
खैराती जीवन भला
क्या जाने
Old book
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ना मुझे लिखना आता
फिर कहां अपने दर्द सहलाता
सहलाकर अपने दर्द
एक दिन निकल जाऊंगा
किसी एक जुबां पर सत्य
जरुर कहलाऊंगा
Old book
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सुबह और शाम
हर रोज़ आती है
जीवन भी सुबह शाम कि
भांति है
जो हर रोज़ मिलता है जीने के लिए
मौत के बाद
फिर एक नए जीवन कि शुरुआत
यही लीला है
यही नारायण
Old book
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अजीब हि तो होते हैं वो किस्से
जो पनपते हैं आस-पास
अजीब हि तो होते हैं वो हिस्से
जो काटते हैं पुरा जीवन उदास
Old book
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मैं अपने लेख लिखता हूँ
सम्पत्ति कैसे चुराते हैं
इतना ज्ञान नहीं
और
चाहिए भी नहीं
Shastri
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गुरुर किस बात का
तिनकों को क्या जाने
हवा का
झोंका
जनहित में जारी
Old book
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नमाज़ वक्त पे अदा करेंगे
गर
रुखसाना को पसंद नहीं
तो
दुसरा निकाह करेंगे
पढ़ाई लिखाई में कोई बुराई नहीं
Old book
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