दर्द
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हो गयी है दर्द से, मेरी दोस्ती जब से,
इस दर्द से अब कोई, दर्द नही मिलता ।
अधूरी सी कुछ, लगती जिंदगी ये अब,
दर्द से जब कोई, नया दर्द नही मिलता ।
दर्द देती थी चोटें, अब है मरहम सी,
बिना दर्द अब, हमदम नही मिलता ।
है चाह गर तेरी, अमरता को पाना,
बिन दर्द के, अमरत्व नही मिलता ।
मिटे ये दर्द पुराना,नया चाहिए मुझकों
दर्द ही न हो जो, हमदर्द नही मिलता ।
गर चाह जीवन में, मलय वात शीतलता,
बिन ग्रीष्म के, कभी सर्द नही मिलता।
गर है चमक पाना, दर्द-ए-तपिश मांग ले,
बिन भानू किरणों के कमल नही खिलता।
सह ले दर्द का झरना, घट जाने दे घटनाएं,
बिन घटनाओं के, कोई फर्द नही मिलता।
अधूरी सी कुछ, लगती जिंदगी ये अब,
दर्द से जब कोई, नया दर्द नही मिलता ।।
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