नजरे तलाशती नज़रो को,कहीं नज़र मिल जाये,
मिल जाये ये नज़रे तो,नज़र वही ठहर जाये।।
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आग 🔥 लगा कर दामन में,पूछते हो की क्या ख़ाक हुआ?
जली तो रूह थी पर ये जिस्म राख हो गया !!!
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“पीड़ा का महत्व”
जी हाँ,आपने सही पढ़ा शीर्षक को पीड़ा का महत्व। अब प्रश्न ये उठता है की पीड़ा का कैसे कोई महत्व हो सकता है? पीड़ा का दो अंश है शारीरिक पीड़ा एवं मानसिक पीड़ा।
शारीरिक पीड़ा:- आमतौर पर जब हमे चोट लगती है तब उस घाव से उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रिया जिस से वह अंग या भाग बिना कष्ट के अपना कार्य नहीं कर पाता उसे हम पीड़ा कहते है, जो कि चोट के आकार और गंभीरता पर निर्भर करता है की कब तक दुखना है कितना दुखना है।
मानसिक पीड़ा :- कभी भी जब हमारे मन के विपरीत कार्य हो,या जब कहीं असफल हो जाये या अचानक कोई हमारा हम से बिछड़ जाये इत्यादि।जब मानसिक पीड़ा होती है तो दिनचर्या में बदलाव आने लगती है और धीरे धीरे व्यवहार बदलने लगती है। इसका परिणाम यह होता है की व्यक्ति अपने ही विचारो के बुने हुये जालो में फँसता चला जाता है।
पीड़ा चाहे मानसिक हो या शारीरिक दोनों उस व्यक्ति के भीतर से बदलने के लिये आती है। अधिकांश समय में हम जब इन परिस्थिति से गुज़रते हैं तो औरों को या स्वयं या भगवान को दोष देने लगते हैं।इस विकट स्थिति में धैर्य रखते हैं है और छोटी छोटी बातों अकारण प्रतिक्रिया देने लगता या एकदम से शान्त हो जाते है और ये दोनों समस्या का हल नहीं है उल्टा इससे एयर ज़्यादा परेशानी बढ़ती है।
ऐसी स्तिथि में थोड़ा विचलित होने के पश्चात हमे संभलते हुए अपनी पीड़ा/समस्या पर ध्यान देना चाहिये और भीतर से क्या बदलाव करना है उसके स्वीकार हुए इसका उचित निदान ढूँढना चाहिए।
खासकर मानसिक पीड़ा जो की हमारी भावनाओं एवं रिश्तों से जुड़ी होती है इसलिए इससे से छुटकारा पाना इतना आसान नहीं होता।अगर हम ऐसी स्तिथि में अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित कर ले और इस पीड़ा का महत्व क्या है क्यो मेरे वर्तमान जीवन में इसका आगमन हुआ है?मुझे सीख लेना चाहिये ?या क्या ग़लत कर रहा हूँ ?जिसे त्याग करना है,इन बिंदुओं पर ध्यान देंगे तो हम पीड़ा के प्रभाव को कम कर लेंगे।
हर पीड़ा हमे दुःख देने नहीं आती है बल्कि हमें सीखने आती है।।-
नाम समय,पर दौर बुरा चल रहा है,
रण का वीर माफ़ी नामा लिये घूम रहा है।।
लाँघ कर सारी मर्यादा,फूहड़ता की सभी हदे कर दी पार,
Dark Humour की आड़ में,रिश्तों को कर रहे थे शर्मसार ।।
अश्लीलता का यह भयावह रूप,अब बन गया बड़ा व्यापार,
इनकी निर्लज्ज हँसी सुन सहम गया वो बेजान सभागार।।
“समय “ख़राब हो तो दिन ही नही,“रैना” भी ख़राब हो जाती है ।
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जब आये ख़ुश मिज़ाज मेहमान,
लेकर होठों पर ख़ूबसूरत मुस्कान,
बातो ठहाकों में बीत गया वक़्त,
यादों का वो चला लंबा कारवाँ,
देखते ही देखते हो गई रात जवां,
पल भर में गुज़र गयी,ये रंगीन शाम ।।
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हे माँ,वीणा धारिणी,
हे माँ,कला संचारिणी,
जय माँ कण्ठ निवासिनी,नारायणी नमोस्तुते ।।
हे माँ,ज्ञान प्रकाशिनी,
हे माँ,अज्ञान विनाशिनी,
जय माँ मोक्ष दायिनी, नारायणी नमोस्तुते ।।
हे माँ, श्वेत वस्त्र धारिणी,
हे माँ,ब्रह्मलोक निवासिनी,
हे माँ, जीवन दायिनी, नारायणी नमोस्तुते ।।
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ 🥳
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नैनो की भाषा पढ़ने लगा हूँ,
गीत-ग़ज़ल को समझने लगा हूँ,
सपनों की दुनिया में खोने लगा हूँ,
इश्क़ की गली में कदम रख दिया हूँ,
ख़ुद को राँझा मजनू सा समझने लगा हूँ ।।
यारी अब फूल-पत्तियों से करने लगा हूँ,
हवा में रंग,रंग में ख़ुशबू ढूँढने लगा हूँ,
ये तो शुरुवात है ना जाने,क्यों बहकने लगा हूँ,
और बिना पिये ये ख़ुमार कैसा चढ़ा की,
इश्क़ की दहलीज़ पर ही लड़खड़ाने लगा हूँ,
इश्क़ की दहलीज़ पर ही लड़खड़ाने लगा हूँ ।।
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“अनुप्रास अलंकार”
कोहली ने कोहनी से कोनस्टास को धक्का मारा 😆
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मेहनत इतनी खामोशी से करो की सफलता शोर मचा दे,
इस कथन को चरितार्थ किया है, स्व श्री मनमोहन सिंह जी ने।
सादर नमन 🙏🙏🙏 विनम्र श्रद्धांजलि 💐💐🌹🌹-