Shashikant Kushwaha   (शशिकांत कुशवाहा)
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Joined 12 November 2017


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Joined 12 November 2017
10 JAN 2022 AT 19:21

रुक मत,
झुक मत ,
हालातों से लड़ ।
दिन बनाने के लिए , इन रातों से लड़ ।
अंधेरा मानस-पटल पर कुछ गहरा छा रहा क्या ?
ये तिमिर दिवाकर तेज को छिपा रहा क्या ?
एक नई सुबह होगी ,
आभामंडल तेरा कुछ लालिमा सा होगा ,
पावक बनने तक,
एक चिंगारी जलाने के लिए लड़ ।
हालातों से लड़ ,
दिन बनाने के लिए इन रातों से लड़ ।

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5 JAN 2022 AT 12:25

किसी के जमीन को आसमान मिल जाए,
रहने को छत हो,
एक छोटा मकान मिल जाए ।
पंख छोटे पर हौसला है ..आसमान छूने का,
बाबा विश्वनाथ की नगरी में
जब रहने का सौभाग्य मिल जाए ।

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5 MAY 2021 AT 23:50

यह राह इतना आसान न था,
ख्वाब बड़े थे, सर पर मकान न था ।
रुख हवाओं का ,बेरुखी रहा कुछ इस तरह,
उजड़ रहा था सपना-घरौंदे का,
आसपास दिखता कोई तूफान न था,
यह राह इतना आसान ना था ,
ख्वाब बड़े थे, सर पर मकान न था ।
आस लेकर ही चले थे ,सब रतन -जन छोड़कर,
सामने थी कोटि विघ्न-बाधाएं,
यूं पास में श्मशान था ,
यह राह इतना आसान न था,
ख्वाब बड़े थे,सर पर मकान न था ।
यह राह.....

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25 APR 2021 AT 12:10

यादों का सफर शानदार किया हैं ,
तन-मन से हर लम्हे को जिया है,
गोता लगा ही लेता हूं, उन लम्हों की नदी में ;
खाकी के रंग में रंगकर यह तन वतन के नाम किया है ।

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18 APR 2021 AT 14:17

मिटी जब साख तो गांव याद आया,
हुआ जब राख सपनो का शहर,
वो पीपल का छाँव याद आया ।
बनायी थी हमने इमारतें शहरों में ,जला जब पैर दुपहरी में,
वो कच्ची सड़के पुराना मकां याद आया,
ये जो मिट रही हस्ती कुछ पलों में,
बैठना देर तक जाड़े की रातों में ,
मुहल्ले का अपनापन , वो अलाव याद आया ,
घूम कर सारी दुनिया जो जहाजों से हमने देखी थी ,
बात जब आयी खुद को बचाने की,
बचा ले जो सभी झंझावतो से,
गांव का वो स्वभाव याद आया
हमने बदल डाले थे नीति ,नियत और विचारो को ,
पहुंचकर गांव के चौराहे पर ,
लगाया कुछ इस तरह गले से लोगों ने,
वही पुराना प्यार और लगाव याद आया ।
मिटी जब साख तो गांव याद आया....

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19 FEB 2021 AT 23:35

तू तना है ,
डालियों को तूफां तक जोड़कर तो रख,
नई कोपलों को,
हाँ...
भला रोक सकता है कौन?

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31 DEC 2019 AT 11:42

मैं मौन रहूं , तेरा मान रहे
अंकू तेरे अंक का
ख्वाब बुन रहा अब भी मैं,
जन्मदिवस पर उधेड़बुन
मकड़ी -जाले सा है ,
शुभकामनाएं प्रेषित कर पाऊं?
ये आस , अमावस उजाले सा है l
रामनगर किले के प्राचीर से
शहर को निहारकर ,
मंदिर में माथा टेक,
खुशियों का पल बांटा था ,
हाथों में रख हाथ केक काटा था ,
खिलाकर एक दूजे को ,
वो अविरल प्यार आंखों ही आंखों में बांटा था ,
आज दोराहे पर खड़े हैं हम दोनों
रास्ते जुदा है , मिलने की गुंजाइश ....ना
उम्मीद की रोशनी अभी इन आंखों में है,
एक मुलाकात होगी ?
मजबूर वक्त के हाथों में हैं....
किंकर्तव्यविमूढ़ हूं
आज इस दिवस विशेष पर,
तुम्हें चंद अल्फाज कहूं किस हक पर,
तू पुलकित रहे ,
पूरे हो हर ख्वाब , जो है तेरे पलकों पर ,
दे लाख बालाएं खुदा.. मेरे पथ पर,
बंधन था वो पाक , निर्विवाद
नही रहा संवाद ,
मैं मौन रहूं , तेरा मान रहे...

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29 DEC 2019 AT 17:40

चल आज कमियों का रोना छोड़ते हैं ,
बनाते हैं एक नया रास्ता ,
राह आए पत्थरों को तोड़ते हैं l
बना खुद को इस कदर काबिल ,
जमी है तेरी ,
यूं बात-बात पर क्यों शहर छोड़ते हैं ?

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28 DEC 2019 AT 13:38

घांव जो भरे थे ,
नासूर हो रहे हैं
डूबा कर कश्तियां मेरी ,
वो मशहूर हो रहे हैं l
लगा लो आग ,
झोपड़ी मेरी ही नहीं इस बस्ती में ,
मकां तेरा भी आएगा ,
लपटों की जद में ,
सपने तेरे भी चकनाचूर हो रहे हैं l

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25 DEC 2019 AT 13:31

वो अलख जगाकर,
सूत्रपात कर,
नवदीप जलाकर,
सिंचित ,
पल्लवित ,
पुष्पित करता रहा,
अकाट्य शैक्षिक आदर्शों से ,
तुझे नमन है कोटि-कोटि ,
हे महामना मन:स्पर्शो से..

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