ज़िन्दगी किसी पहेली से कम नहीं
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Social is never
appreciated
And find popularity.
No body understand
his reality and quality.-
वो थे मेरे रुबरू और मै था उनके रूबरू ।
शर्त थी आँखों ही आँखों से करेंगे गुफ़्तगू ।।
उसने बदली बात रुख मेरा बदल के रह गया ।
मैनें कहना और कुछ था और कुछ मैं कह गया-
गिर्द जब भी आदमी के, तीरगी बढ़ जायेगी ।
बन्दगी के फैज़ से, कुछ रौशनी बढ़ जायेगी ।।
उसका ज़लवा ख्वाब में भी, आपने देखा अगर ।
आपकी आँखों में लाजिम, तिश्नगी बढ़ जायेगी ।।
जब हकीकत आ गई, खुलकर नज़र के सामने ।
देख लेना आप में फिर, सादगी बढ़ जायेगी ।।
मत उठा लेना कसम, सच बोलने कि, दहर में ।
बेसबब सारे जहां से, दुश्मनी बढ़ जायेगी ।।
आईना दिखला दिया जब, आपने महबूब को ।
उसके लहजे में उसी दिन, बेरुखी बढ़ जायेगी ।।
इल्तज़ा ही जानिये, कुछ देर को आ जाइए ।
आप के आने से थोड़ी ज़िंदगी बढ़ जायेगी ।।
हो गया दीदार गर, मरने से पहले आपका ।
रुखसती के वास्ते, आसूदगी बढ़ जाएगी ।।
मैंने देखी हैं, ‘शशि’ कि आँख में दीवानगी ।
आप गर आजायेंगे, उसकी ख़ुशी बढ़ जायेगी ।।
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