नवरात्र सिर्फ़ पूजा और उपासना का पर्व नहीं है। यह नारी सशक्तिकरण का प्रतीक है, जिसे हमें अपने घर, समाज से शुरू करना होगा।
जहाँ देवी स्वरूप बेटियों को सामाजिक रूढ़िवादी परम्परा में दबोचकर गाला घोटा जाता हैं भेदभाव के साथ उनकी आजादी को रीतिरिवाजों के जंज़ीरों में जकड़ कर खत्म कर दिया किया जाता है।
जिस देवी के हाथों में सृजन, पालन और संहार रूपी तीनों गुण हैं, उसे हीं जन्म लेने के लिए सबसे पहले माँ के कोख से हीं संघर्ष करनी पड़ती है, अगर जन्म हो भी जाए तो पूरी ज़िंदगी इज्ज़त, आजादी, बराबरी और सुरक्षा के लिए समाजिक महिसासुर जैसे राक्षसों संग विकलांगता रूपी परम्पराओं से लड़ते रहना पड़ता है।
अतः आदिशक्ति देवी को पूजने के साथ उनके अंश रूपी बेटियों को इन समाजिक कुरीतियों से लड़ना न पड़े ऐसी मानसिकता की जरूरत हैं।-
ये दीप शिखा अपनी ज्योति से, अंधकार जीवन से मिटा देना,
विश्वास जगे हर एक के मन में, एक ऐसी ज्योति जला देना।
मैं नमन करूँ कोटी-कोटी से, पथ प्रकाश की राह दिखा देना,
अमावश्या की ये रात घनी है, हिम्मत की आश जगा देना।
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क्या? बेटे केवल आन होते हैं? माँ बाप के पहचान होते हैं
बेटियां भी तो शान होती हैं, माँ बाप की अभिमान होतीं हैं।
अपनें बेटियों पे भी गर्व करो, बेटा बेटा चिल्लाने वालों,
पितृसत्ता निभानें वालों, अब तो थोड़ी शर्म करो।
बेटों जैसा अधिकार दे दो, उनके जैसा भीं प्यार दे दो।
भले जमीन जयदाद न दो, माँ बाप के उपनाम न दो,
बस प्यार की मीठी बात दे दो, हाथ पकड़ के साथ दे दो।
वो भी इसकी हक़दार हैं, आपके बुढ़ापे की पहरेदार हैं,
बस थोड़ी हिम्मत आश दे दो, बस इतनी सी विश्वास दे दो,
जन्म दिया है तो साथ दे दो, आगे बढनें की हाथ दे दो।-
सपनें तो, खरगोश की तरह तेज़ भागने की है,
पर, ज़िन्दगी और समय ने कछुआ बना रखा है।
ख़ैर...।
इरादें और हसरतें मेरी बहुत कुछ पाने की है,
क्योंकि,
कमबख्त इन आँखों ने, ख्वाब जो सजा रखा है।-
लड़े जंग वीरों की तरह,
आगे बढ़े तीरों की तरह,
जो दुश्मन का सीना पार हुआ,
नमन करता हूँ मैं उन वीरों को,
उन भारत के रणधीरों को,
जिनसे भारत का उद्धार हुआ।
✍️शशि।-
हे ख़ुदा!
सभीं की दोस्ती और प्यार को बनाए रखना,
इस गुलशन से भरे बाग़ को सजाए रखना,
ये रिश्ते एक दूसरे को बड़े नसीब से मिलते हैं,
जो खून से नहीं, मोहब्बत की जुनून जुड़ते हैं।
वे अनजाने होकर भीं ख़ास बन जाते हैं।
साथ जीवन जीने की आश बन जाते हैं।
✍️Shashi-
माँ
रब से बिन मांगें, वो मिली मेरी मन्नत है,
ख़ुदा से भीं ऊपर, ख़ुदा पे भी तेरी रहमत है।
जो भीं मैं आज हूँ, खुद पे जो नाज़ हैं,
तूँ हीं मेरी रहनुमा, तुझसे हीं बरकत है,
तू हीं मेरी दुनिया, तू हीं मेरी जन्नत हैं।
तूँ स्नेह हैं, करुणा है, दया है, छया है,
शब्दों में कैसे बाँधूं? तूँ ऐसे स्वरूप है,
आँचल की छाँव लिए ममता की रूप है।
जादू की झपकी हो, लोरि की थपकी हो,
रब से जो दुआ की, वो कबूल भी हुआ हैं।
बस तूँ है तो सब है, साथ मेरे रब है।
✍️शशि.
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एक तुम्हीं तो साथ में थी,
हर एक सुनहरी रात में थी,
जो सुकुन से सुलाती थी,
हर ग़म को भुलाती थी।
ये नींद आज तुम भी बेवफ़ाई कर गई,
कलतक तो साथ में ही थी,
आज पता न कहाँ खो गई।
जब भी अकेला होता था,
तुम्हीं में आकर खोता था,
इन आँशुओं की झलक न लगे,
इस हकीकत की भनक न लगे,
तेरे संग वो यारा, लेकर तेरा सहारा
बस, उस सपनें में हीं रो लेता था।
ऐसे कोई देख न ले, यूँ हीं कोई परेख न ले,
होते सुबह, आँख धो लेता था।
✍️शशि..-
माना कि सहना मुश्किल है,
अपनों से कहना मुश्किल है,
फिर भीं,
ग़लत जगह फंसने से बेहतर है,
यूँ हीं सफ़र में बढ़ते रहना,
अर्जुन के तीरों के वार को,
भीष्म बनकर के सहते रहना।
तलाबों ने रोककर कहा,
मेरे तरह इन गढ़ों में तुम भीं मत फ़स जाना,
बहने के डर से थककर के तुम भीं मत सड़ जाना,
चाहें ज़माना पागल समझें चाहें कहे दीवाना,
सपनों को अपनों में जीकर,
आँसू को कंठों से पीकर,
चेहरे पे अर्द्ध मुस्कान लिए
यूँ ही सफ़र में बढ़ते जाना।
✍️शशि।-
ये चेहरे पे जो मुस्कान आईं है,
ये वास्तव में वहीं है या फिर,
अंदर के जख्मों को छुपाई है,
इन आँखों में समुंदर की लहरें हैं,
इन पलकों की वस की बात कहाँ,
इनसे न कभीं ये रुकी हैं, न ये रोक पाईं हैं।
ये सांसों की आंधी के झोकों ने,
इन सिसकियों को दबा रखा है,
इन ओठों के दुविधाओं को,
ये सख्ती से बता रखा है,
यूँ ही न तुम कुछ बोल देना,
दबे राज को तुम न खोल देना।-