भूखा पेट भी बहुत बवाल काटता है नहीं मिलता जब भी वक्त पे खाने को कुछ,जिस पे हक चलता है उसी को डांटता है -
भूखा पेट भी बहुत बवाल काटता है नहीं मिलता जब भी वक्त पे खाने को कुछ,जिस पे हक चलता है उसी को डांटता है
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बहुत दूभर है स्थिति बेहद दुविधा पूर्ण हालात हैं न मैं मिल सकता हूं उस से ,न पास अपने ला सकता हूं बदलेगा,ज़रूर बदलेगा वक्त मेरा,कठिन से कठिन हालात में भी, मैं ही तो हूं जो निभा सकता हूं -
बहुत दूभर है स्थिति बेहद दुविधा पूर्ण हालात हैं न मैं मिल सकता हूं उस से ,न पास अपने ला सकता हूं बदलेगा,ज़रूर बदलेगा वक्त मेरा,कठिन से कठिन हालात में भी, मैं ही तो हूं जो निभा सकता हूं
मैं तेरी ज़रूरत नही , ख्वाहिश होना चाहता था,हंसने को तो साथ मेरे दुनिया सारी खड़ी है, पर मैं तेरे साथ रोना चाहता था -
मैं तेरी ज़रूरत नही , ख्वाहिश होना चाहता था,हंसने को तो साथ मेरे दुनिया सारी खड़ी है, पर मैं तेरे साथ रोना चाहता था
अभी मिलना हो रहा है मुश्किल मेरा, मेरी मां से,कहती है कॉल पे,बच्चे , मैं बहुत दुखी,जवाब होता है मेरा, मै तुझ से भी ज्यादा,फिर हम हो जाते हैं दोनो सुखी -
अभी मिलना हो रहा है मुश्किल मेरा, मेरी मां से,कहती है कॉल पे,बच्चे , मैं बहुत दुखी,जवाब होता है मेरा, मै तुझ से भी ज्यादा,फिर हम हो जाते हैं दोनो सुखी
जिंदगी का कोई और मकसद हो के न हो इतना तो होना ही चाइए ,आप की वजह से कोई खुशी किसी को मिले न मिले, मगर आंसू किसी आंख में होना नहीं चाइए -
जिंदगी का कोई और मकसद हो के न हो इतना तो होना ही चाइए ,आप की वजह से कोई खुशी किसी को मिले न मिले, मगर आंसू किसी आंख में होना नहीं चाइए
एकदम सही है कि मैं अब किसी का सहारा नहीं हूं मगर खुद की जरूरतों के लिए मैं अभी भी नकारा नहीं हूं -
एकदम सही है कि मैं अब किसी का सहारा नहीं हूं मगर खुद की जरूरतों के लिए मैं अभी भी नकारा नहीं हूं
हमें भी जिंदगी में सब कुछ गलत ही करना पड़ा जिन्हे जीना चाइए था न मेरा नाम लेकर उन्ही के लिए मरना पड़ा 9.6.23 -
हमें भी जिंदगी में सब कुछ गलत ही करना पड़ा जिन्हे जीना चाइए था न मेरा नाम लेकर उन्ही के लिए मरना पड़ा 9.6.23
That every body wants to solve but none of us can -
That every body wants to solve but none of us can
बहुत थी कोशिश कि मैं खड़ा रहूं सच के सामने तन कर,अन्त नतीजा यही रहा झूठ ही आया मेरी ढाल बन कर -
बहुत थी कोशिश कि मैं खड़ा रहूं सच के सामने तन कर,अन्त नतीजा यही रहा झूठ ही आया मेरी ढाल बन कर
चाहता तो मैं भी हूं कि zald से zald bigde hue हालात बदल दूं लेकिन कौन समझे इस बात को कि इस काम के लिए मैं kaise har ak ko badal dun -
चाहता तो मैं भी हूं कि zald से zald bigde hue हालात बदल दूं लेकिन कौन समझे इस बात को कि इस काम के लिए मैं kaise har ak ko badal dun