लोग इस दुर्लभ सामाजिकता में असामाजिक होते जा रहे हैं। वर्तमान समाज को अगर बारीकी से देखा जाए तो व्यक्ति सिर्फ़ स्वयं तक सीमित है, आत्मकेंद्रित है। बड़े-बड़े नैतिक आचरण तो अल्प मात्र बचा होगा किंतु समाज में रहने का सामान्य व्यवहार भी लुप्त होता जा रहा है। अनायास ही लोग अहंकार से सने हुए है।
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सफल होने के लिए ईमानदार होना नही चापलूस होना ज़रूरी है। पूर्व में दी गयी गालियाँ वर्तमान के चापलूसी से ढकी जा सकती हैं।
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दूसरे के घोंसले पर अधिकार करने वाली कोयल की आवाज़ हमें मीठी लगती है। मीठेपन के पीछे छिपा होता है स्वार्थ और क्रूरता।
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उसने कब कहा था,
वो तो मैं ही था जो सुनता रहा और बुनता रहा
जीवन का सपना।
आज ढह गया वो महल तो कैसा शोक ?
वो महल जो कभी अस्तित्व में था ही नही,
कल्पना में जीवित था।-
ऐसा नही है की आप अपनी विचारधाराओं में परिवर्तन नही कर सकते। समय, काल, परिस्थिति के अनुसार हर वस्तु बदलती है। ना बदलना जड़ हो जाना है। जड़ता विकास में बाधक होती है।
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देश में तीन जातियाँ हैं- नेता, अधिकारी और आम जनता। दो जातियों में एकता है लेकिन आम जनता आपस में लड़ रही है।
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जब चलना ही है तो हम वैसे क्यों न चले जैसे हम चलना चाहते हैं। अपने से कम योग्य के नेतृत्व को स्वीकार करना अपनी योग्यता का अपमान होता है।
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बदल रही है सूरत अब गाँव की
शहरी हो रही है मिट्टी अब गाँव की,
लोग गाँवों से शहरों में जा बसे
सुनी हो रही है गालियाँ अब गाँव की।-
लहरों के साथ कुछ सीपियाँ किनारों पर लग जाती हैं,
और कुछ कदमों के निशान सागर मे समा जाते हैं।-
रात के अँधेरे को काटकर सूरज जब धरा पर प्रकाश फेंकता है तब मन मे नये सवेरे को लेकर कई आशाएँ जन्म लेती है, कई योजनाएं मन तैयार कर लेता है, किन्तु रात होते कुछ आशाएँ बुझ जाती है, कुछ योजनाएँ आधूरी रह जाती है। इस नई सुबह में मै ईश्वर से ये प्रार्थना करता हूँ कि आपकी समस्त आशाओं को तृप्ति दे और आपकी समस्त योजनाओं को साकार करें ।
-शुभ प्रभात--