Shashi Dhar Chaubey   (शशीधर चौबे)
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Joined 22 May 2018


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Joined 22 May 2018
29 JUN 2022 AT 10:45

लोग इस दुर्लभ सामाजिकता में असामाजिक होते जा रहे हैं। वर्तमान समाज को अगर बारीकी से देखा जाए तो व्यक्ति सिर्फ़ स्वयं तक सीमित है, आत्मकेंद्रित है। बड़े-बड़े नैतिक आचरण तो अल्प मात्र बचा होगा किंतु समाज में रहने का सामान्य व्यवहार भी लुप्त होता जा रहा है। अनायास ही लोग अहंकार से सने हुए है।

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27 JUN 2022 AT 18:27

सफल होने के लिए ईमानदार होना नही चापलूस होना ज़रूरी है। पूर्व में दी गयी गालियाँ वर्तमान के चापलूसी से ढकी जा सकती हैं।

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28 MAY 2022 AT 11:54

दूसरे के घोंसले पर अधिकार करने वाली कोयल की आवाज़ हमें मीठी लगती है। मीठेपन के पीछे छिपा होता है स्वार्थ और क्रूरता।

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13 MAY 2022 AT 13:23

उसने कब कहा था,
वो तो मैं ही था जो सुनता रहा और बुनता रहा
जीवन का सपना।
आज ढह गया वो महल तो कैसा शोक ?
वो महल जो कभी अस्तित्व में था ही नही,
कल्पना में जीवित था।

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30 APR 2022 AT 17:19

ऐसा नही है की आप अपनी विचारधाराओं में परिवर्तन नही कर सकते। समय, काल, परिस्थिति के अनुसार हर वस्तु बदलती है। ना बदलना जड़ हो जाना है। जड़ता विकास में बाधक होती है।

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25 APR 2022 AT 16:51

देश में तीन जातियाँ हैं- नेता, अधिकारी और आम जनता। दो जातियों में एकता है लेकिन आम जनता आपस में लड़ रही है।

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17 APR 2022 AT 16:49

जब चलना ही है तो हम वैसे क्यों न चले जैसे हम चलना चाहते हैं। अपने से कम योग्य के नेतृत्व को स्वीकार करना अपनी योग्यता का अपमान होता है।

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19 MAR 2022 AT 8:22

बदल रही है सूरत अब गाँव की
शहरी हो रही है मिट्टी अब गाँव की,
लोग गाँवों से शहरों में जा बसे
सुनी हो रही है गालियाँ अब गाँव की।

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23 MAY 2018 AT 12:13

लहरों के साथ कुछ सीपियाँ किनारों पर लग जाती हैं,
और कुछ कदमों के निशान सागर मे समा जाते हैं।

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12 JAN 2022 AT 8:28

रात के अँधेरे को काटकर सूरज जब धरा पर प्रकाश फेंकता है तब मन मे नये सवेरे को लेकर कई आशाएँ जन्म लेती है, कई योजनाएं मन तैयार कर लेता है, किन्तु रात होते कुछ आशाएँ बुझ जाती है, कुछ योजनाएँ आधूरी रह जाती है। इस नई सुबह में मै ईश्वर से ये प्रार्थना करता हूँ कि आपकी समस्त आशाओं को तृप्ति दे और आपकी समस्त योजनाओं को साकार करें ।
-शुभ प्रभात-

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