लोग कहते हैं ये "दौर" मोहब्बत का नहीं लोग कहते हैं ये "दौर" मोहब्बत का नहीं! तो अर्ज़ किया हैं कि जनाब... मोहब्बत को न दो किसी "दौर" का वास्ता मोहब्बत को न दो किसी "दौर" का वास्ता! जो फासलों को कम करदे, जो बंधनों को कम करदे, जो करदे मजबूर रुकने के लिए, हर किसी ही नहीं सिर्फ़ एक के लिए! जिसमें इबादत का इत्र हों, जिसमें रूबरू हों सांसें फिर भी वो पवित्र हों, जिसमें रास्ते अनेक और मंज़िल एक हों, जनाब वहीं मोहब्बत हों तेरा मेरा की जगह हमारा हों! मोहब्बत वही हैं जनाब जो हर "दौर" में हों।।