अपने बचपन के दुखों को याद करके,
हमें हर सुविधाओं से सजाया।
अपना हर सुख त्याग कर,
अपने बच्चों को शिक्षित बनाया।
हे पिता और किससे हमने ऐसा स्नेह पाया।।
हैं मात पिता ही जग में,
जिन्होंने अपना सब कुछ है हम पर लुटाया।
हमारी हर भूल को भुलाकर,
फिर से उसी अनुराग से हमें अपने गले लगाया।
हे मात पिता और किससे हमने ऐसा स्नेह पाया।।-
हर मुसीबत में जिन्होंने सहारा दिया,
खुद हर दुख सह के हमें हंसाया।
जिस चीज पर हमारी आंखें रुकी,
वह हर चीज उन्होंने हमें दिलवाया।
हे पिता और किससे हमने ऐसा स्नेह पाया।।
हो चोट चाहे मन की या फिर हो तन की,
सब भूलकर उन्होंने हमारे लिए खुद को उठाया।
हो चाहे खुद की पीड़ा कितनी भी गहरी,
हमें कभी भूखा नहीं सुलाया।
हे पिता और किससे हमने ऐसा स्नेह पाया।।-
कुछ यादें अब भी सताती हैं,
भुलाने पर भी जो आती हैं।
जिन नगमों को हम भूल गए,
वह हर बार लबों पर आती हैं।।-
इंसान सच को छिपाता है,
खुद को कमजोर समझ कर।
एक आईना है जो कमजोर होकर भी,
सच दिखाता है।।-
यह धरा भी कँपकँपाएगी,
अंबर भी जगमगाएगा।
जिन्होंने आज तक नहीं माना,
वह भी तेरे गुण गाएगा।।
क्यों हो रहे उदास तुम,
क्यों करता खुद को हताश है।
मोह त्याग कर आगे बढ़,
जीतना यह संसार है।।-
तुम अविचल पर्वत के समान हो,
जो डिगे नहीं मुसीबत की आंधियों से।
कर मन को शांत,
चल भिड़ चल हर चट्टान से।
है साहस किसमें कि तुम्हें रोक सके,
निज बल का भान करा सबको।
गर कोई खड़ा हो जाए पथ पर तेरे,
दिखा अपना पौरूष उसको।-
खड़े क्यों हो हारकर,
अभी तो समंदर पार करना बाकी है।
क्यों मन को मार रहे तुम,
इस दुनिया में कौन तुम्हारा सानी है?
तुम एक मशाल हो,
ये रखो याद।
करने आए कुछ कौतुहल हो,
बस कुछ करने की ठानों आज।-
जो रिश्ता बनाओ,
उसे दिल से निभाना है।
विश्वास के काबिल बने रहो,
आखिर उपरवाले को मुँह भी दिखाना है।
करो तुम सबका सम्मान,
बस जानें न दो तुम मान।
करना हर किसी से स्नेह,
बिन रखें ऊंच नीच का भान।।-
वहीं करो जो ज़मीर कहे,
इच्छाऐं तो बहुत कुछ कहती हैं।
वहीं रास्ता पकड़ो जो तुम्हें सही लगे,
दुनिया तो टोकती ही रहती है।
खुद को पहचानों तुम,
अंदर के इंसान को जानो तुम।
हर व्यक्तित्व में है कुछ भला कुछ बुरा,
भले को पकड़ो और बूरे को त्यागो तुम।।-
जय हो जय हो जय हो तुम्हारी बजरंगबली,
आज मंगलवार है कर दो भली।
विद्या बल बुद्धि के तुम अनंत निधि,
जय हो जय हो तुम्हारी हे बजरंगबली।
है करनी तुम्हारी कि लंका जली,
था पराक्रम तुम्हारा माँ सीता कि सुध मिली।
है करी तुमने प्रभु राम की अनन्य भक्ति,
जय हो जय हो तुम्हारी हे बजरंगबली।
लाई थी तुमने मृत्यु संजीवनी,
जिससे श्री लक्ष्मण की पीड़ा हरी।
तुम्हारे तेज से हर विपदा टली,
जय हो जय हो तुम्हारी हे बजरंगबली।
पहुंचा कर अपने वक्ष स्थल को क्षति,
दिखाई थी तुमने ह्रदय में सीताराम की झांकी।
नहीं हुआ कोई भक्त ऐसा बड़भागी,
जय हो जय हो तुम्हारी हे बजरंगबली।।-