ज़िन्दगी जी नही पा रहे बस झूज रहें हैं
मांझा है डोरी है, बस पतंग ढूंढ रहे हैं
इक बू सी आती है, फरेब की यहां
खीचड़ के शहर में, कमल ढूंढ रहें हैं
ख्वाहिशें हर रोज़ दस्तक देती हैं, ख़ुद्दारी के किवाड़ों पर
उनका सामना करने की हिम्मत ढूंढ रहे हैं
जेब में नोट नहीं, तो कोई गम नहीं
हम तो अपना सिक्का चलाने का सबब ढूढ़ रहे हैं
गिद्धों बसेरा है यहां, सबको नोचते रहते हैं
हैवानियत के इस जहां में इंसानियत ढूंढ रहे हैं
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