सुबह शाम ख्वाबों मजलिस बैठाया करते हैं,
हर साँस में तेरे यादों की महफिल जमाया करते हैं।
यूँही लब्जों पर नही आता तुम्हारा नाम हमेशा,
क्योकि दिल की धुन पर तुम्हारे नाम की राग गया करते हैं।
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प्रेम अवश्य हो सकता बस,
परिभाषा बदलने की जरूरत है।
पवित्रता की जरूरत है,
नयनों की भाषा बदलने की जरूरत है।
जब प्रेम इश्क मुहब्बत शुरु ही शर्तो पर हैं,
तो फिर ये पासा बदलने की जरूरत है।
शर्तो पर चलते हैं मुसाफिर अनजान,
यदि अनजान नहीं तो रास्ता बदलने की जरूरत है।
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प्रेम अवश्य हो सकता बस,
परिभाषा बदलने की जरूरत है।
पवित्रता की जरूरत है,
नयनों की भाषा बदलने की जरूरत है।
जब प्रेम इश्क मुहब्बत शुरु ही शर्तो पर हैं,
तो फिर ये पासा बदलने की जरूरत है।
शर्तो पर चलते हैं मुसाफिर अनजान,
यदि अनजान नहीं तो रास्ता बदलने की जरूरत है।
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सहजता और शालीनता इस बात का परिचय है।
कि आप जीवन के आधार से कितना जुड़े हैं।
और जीवन के वास्तविक स्वरूप को कितना जानते हैं।
क्योकि वास्तविक जीवन को समझना मनोभूमि का युद्ध है।
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मुखडा क्या देखे दर्पण में दिल में दर्पण चाहिए,
दिल में झांक कर तस्वीर अपनी देखना चाहिए।
बाहर के सौन्दर्य का क्या यथार्थ नही रहता है,
सौन्दर्य भीतर का पहचाने ऐसा दर्पण चाहिए।
रूप रंग और सुन्दरता का महत्व और बढ़ जाता है,
जब हृदय की सुन्दरता का भाव नजर आता है।
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तारीफों का नया अब जमाना हो गया है,
खूबसूरती का नया अब पैमाना हो गया है।
सीरत और हृदय की खूबसूरती का कोई महत्व नहीं,
सूरत का दीवाना अब जमाना हो गया है।-
हवाओं का रुख भी कुछ बदल सा गया है,
सूरज की किरणों में कुछ बदल सा गया है,
सुबह और शाम तो होती है रोज,
मगर जिंदगी में पहले से कुछ बदल सा गया है।
होठों पर मुस्कान की कमी है सबके,
माथे पर बन रही शिकन सी सबके।
हर कोई जिंदगी में जैसे सहम सा गया है,
जैसे कहीं सब कुछ बहक सा गया है।
ठहरा कुछ नहीं पर ठहरी सी जिंदगी लगती है,
चल रही हो नाव धारा ठहरी सी लगती है।
लगता है जैसे कोई गुनाह की सजा है
ठहरा कुछ नहीं पर सब कुछ ठहर सा गया है।-
समंदर भी अधूरा है, अधूरी यहाँ ख्वाहिश है,
जब तक जिस्म में है जान,नई-नई फरमाइश है।
जिंदगी और कुछ नहीं एक आजमाईश है,
खुदा के हाथ में है डोर,कठपुतली की एक नुमाईश।
(लेखक- शशांक अस्थाना)-
जितना बडा संघर्ष होगा,
सफलता उतनी शानदार होगी।
~ स्वामी विवेकानंद जी
( # युवा दिवस की हार्दिक शुभकामनायें)-
सास बहू के रिश्ते को,
माँ और बेटी के रिश्ते,
मे बदलने के लिए,
दहेज़ प्रथा समाप्त करना,
पहला कदम है।
और दहेज़ प्रथा कानून से नही,
दिल से समाप्त होगी।-