ठेस लग जाने के बाद एक बच्चा,
एक इंसान बन जाता हैं....-
Writing lover.
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#__Poetry.
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#__ Inspirat... read more
बहुत कुछ पा लिया बहुत कुछ खोकर...
बहुत कुछ खो दिया बहुत कुछ पाकर...
बहुत कुछ पाएंगे बहुत कुछ खोकर...
बहुत कुछ खो देंगे बहुत कुछ पाकर...
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धरा से अंबर तक यह सब रंग देख लो...
अपने और पराए भी आज संग देख लो...
इस पानी का मज़हब क्या है मुझे मालूम नहीं...
उसमें हर रंग डालकर उसका व्यक्तित्व देख लो...
वो लाल गुलाल किस गाल पर लगे उसे पता नहीं...
लेकिन आज एक ही रंग में सभी उसे संग देख लो...
जो बरसों से इमरती, गुंजिया, लड्डू , बर्फी रूठे हुए थे...
आज उन सभी को एक ही थाली में रंग के संग देख लो...
फाल्गुन माह की पूर्णिमा बड़ी खूबसूरत दिखाई पड़ती है...
क्योंकि इसके अगले दिन रंग के संग सबको रंगा देख लो...
( इस रंग उत्सव की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं)-
बिल्कुल हरे-भरे खेत खलियान जैसा दिल धीरे-धीरे श्मशान हो गया....
कोई कुछ भी बोल देता है और हम उसको चुप चाप दिल मे दफ़न कर लेते है....-
एक बहुत बड़े दार्शनिक ने कहा था कि जब मैं मर जाऊं तो मेरी कब्र पर एक सफेद संगमरमर के पत्थर पर खुदवा देना कि -
मैं अहम था...
मेरा वहम था...
अर्थात:- (अहंकार नहीं होना चाहिए कि मुझे किसी की जरूरत नहीं पड़ेगी...
और यह वहम भी नहीं होना चाहिए कि मेरी जरूरत सबको पड़ेगी...)
एक दार्शनिक ने पूरे जीवन का सार इन दो पंक्तियों के माध्यम से इस संसार को सौप दिया
दुनिया आपके साथ भी चलेगी...
दुनिया आपके बाद भी चलेगी...
ना धर्म जाएगा ना कफ़न जाएगा आपके साथ
आपका कर्म जाएगा.... इंसान हो इंसान रहो !
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इस दुनिया से रूह की तरह निकल जाऊं क्या...
व्यापारी जमाने में मैं भी पंछी की तरह बिक जाऊं क्या...
ये जो दुनिया साफ़ रंगीन चेहरे लेकर फिरती है...
मैं इसको इसके दाग धब्बे आईनो में दिखाऊं क्या...
मैं पत्थर की तरह दृढ़ ज़िद्दी हूं तभी लोग लाख खिलाफ़...
अब मैं भी ईमान बेक कर मोम सा पिंघल जाऊं क्या...
ये जो लोग उजालों में अपनेपन का दिखावा कर रहे हैं...
दिया सा बुझकर इनके चेहरों से लिबास हटा जाऊं क्या...
ए दुनिया अगर तुझको खुद पर गुरुर है हम रहते हैं तुझमें...
तो तेरे अंदर एक जन्नत बनाकर तेरे वहम मिटा जाऊं क्या...
ये जो शख्स नूर हूर फितूर हुज़ूर चेहरों पर लिए फिरते है...
बारिश बनकर इनके झूठे चेहरे तुमको दिखा जाऊं क्या...
( दूसरों से उम्मीद बिल्कुल बुलबुले की तरह होती हैं क्षणभंगुर )-
(ओ टूटते तारे...!)
अच्छाई से पहले बुराई जाहिर कर देना....
नफ़रत से पहले नाराजगी जाहिर कर देना...
वफा से पहले फितरत जाहिर कर देना...
वादे से पहले वक्त जाहिर कर देना...
दोस्ती से पहले दुश्मनी जाहिर कर देना...
मिलाप से पहले मतलब जाहिर कर देना...
विश्वास से पहले संदेह जाहिर कर देना...
सच से पहले झूठ जाहिर कर देना...
समय से पहले परिस्थिति जाहिर कर देना...
घूटन से पहले तकलीफ़ जाहिर कर देना...
मिठास से पहले कड़वाहट जाहिर कर देना...
छल से पहले चाल जाहिर कर देना...
मंजिल से पहले दूरी जाहिर कर देना...
बहस से पहले गलती जाहिर कर देना...
हंसी से पहले आंसू जाहिर कर देना...
प्रीत से पहले जीत जाहिर कर देना...
"खैर"
(तकलीफ़ बनने से अच्छा है, बुरे बन जाना)
"बुरे आप एक बार बनते हो, तकलीफ़ आप बार बार बनते हो"
-- shariq choudhary
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मैं एक दिये की तरह हूं,
दिन के उजाले में दुनिया होगी तुम्हारे साथ
लेकिन जब अंधेरे में सब छोड़ जाए
तो मुझको जला लेना क्योंकि मैं एक दिया था
और दिया ही रहूंगा....
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वक्त-ए-फुर्सत मांग कर लाए थे चार दिन खुदा से इस समुंदर को समझने के लिए मगर दो साहिल पर कट गए दो लहरों में बट गए लो मुबारक तुम्हें यह दुनिया मतलब परस्त अपनी हम तो अजनबी थे चार दिन....
बहुत कुछ पा लिया बहुत कुछ खो कर...
बहुत कुछ खो दिया बहुत कुछ पा कर...
" अगर आप सब कुछ खोने का साहस रखते हो
तो आप सब कुछ पाने की काबिलियत भी रखते हो "
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इस रात को होने से रोक पाओगे क्या...
इस चांद को खोने से रोक पाओगे क्या...
इस हवा को चलने से रोक पाओगे क्या...
इस पेड़ को सोने से रोक पाओगे क्या...
इस ओश को गिरने से रोक पाओगे क्या...
इस पत्ते को झड़ने से रोक पाओगे क्या...
इस सुबह को होने से रोक पाओगे क्या...
इस पंछी को उड़ने से रोक पाओगे क्या...
इस धूप को पड़ने से रोक पाओगे क्या...
इस फूल को मरने से रोक पाओगे क्या...
इस सूरज को ढलने से रोक पाओगे क्या..
इस चक्रव्यू को चलने से रोक पाओगे क्या...
" जब तुम किसी को रोक नहीं पा रहे हो
तो तुम खुद को क्यों रोके जा रहे हो "
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