शायर होके भी कुछ कहा नहीं जाता,
चराग तले से जैसे अंधेरा नहीं जाता.
जांबाज़ इतने हैं कि जिए जा रहे हैं,
बुज़दिल ऐसे कि मरा नहीं जाता.
जानकर तुम्हें ताज्जुब होगा मगर,
इन आंखों से कोई दरिया नहीं जाता.
©️फ़ितूर-
है नमन उन वीरों को जो खुद को ही करके समर्पित,
मृत्यु की बाहों में जाके मुस्कुराकर सो गए हैं.
है नमन उस मां को जिसने आँख के तारे को खोया,
जिसके हृदय के सामने सौ वज्र कंकड़ हो गए हैं.
है नमन उस भाई को जिसने उसे चलना सिखाया,
वो प्रेम जिसको देखकर यमराज खुद भी रो गए हैं.
जिनको पाकर मृत्यु भी सौभाग्यशाली हो गई,
जो स्वतंत्रता पर्व देकर खुद कहीं पर खो गए हैं.
है नमन उन वीरों को.....🙏🙏🇮🇳-
मेरी हथेली पर तूने दिल बनाया था कभी,
आज भी उसकी धड़कन सुना सकता हूं मैं.
-Shardendu Shukla-
कुछ इस तरह मैं संभल रहा हूं,
कतरा-कतरा करके बिखर रहा हूं।
मुझसे आखिरी ख्वाहिश तो पूछ ले,
जाना मैं अब यकीनन मर रहा हूं।
तुम्हें चैन की नींद कैसे आती है,
ये सोच कर करवट बदल रहा हूं।
कभी-कभी रोना भी खुशी देता है,
यानी मैं बहोत खुशी से रह रहा हूं।
जिसके आने की नहीं उम्मीद 'मोहन',
उसके आने की उम्मीद कर रहा हूं।-
मैं ग़म-ए-इश्क को उठाता रह गया,
ये रिश्ता अकेले ही निभाता रह गया.
कुछ दिन तो मैं रोया उससे बिछड़कर,
फिर दर-ओ-दीवार को चुप कराता रह गया.
वो मेरी सदा सुनकर भी मुड़ा ही नहीं,
मैं पागल था आवाज लगाता रह गया.
उसने आज मेरा ख़त लौटाया है मुझे,
पढ़कर मैं रोते-रोते मुस्कुराता रह गया.-
कहता था मुझसे दूर नहीं जाना है उसने,
आज नये हाथों को हंसकर थामा है उसने
मेरे वजूद से कोई फर्क नहीं पड़ता उसको,
मैं बुलाऊं तो भी कौन सा आना है उसने
मैं आज भी उसकी कसम नहीं तोड़ता,
वादा करना है और मुकर जाना है उसने-
ख़ामोशी के शोर से बहरा हो गया हूं मैं,
इतना बरसा के अब सहरा हो गया हूं मैं.-
ख़ुश हो तो रोये, ग़मों पे मुस्कुराता है क्या,
वो भी ग़म-ए-यार को सबसे छुपाता है क्या.
इश्क़ का मर्ज़ है तो आसार भी नज़र आयेंगे,
वो फटे ख़त के टुकड़े फिर से मिलाता है क्या.
किसे मंज़ूर उसके खुदा को बुरा कहे कोई,
वो अब भी बेवफा को बावफा बताता है क्या.
इतना मशरूफ है वो खुद से भी नहीं मिलता,
अब भी उसके किस्से दीवारों को सुनाता है क्या.-
मेरी हथेली पर तूने दिल बनाया था कभी,
आज भी उसकी धड़कन सुना सकता हूं मैं.-
रातों को फ़लक पे जब लाखों लाख सितारे होते हैं,
जब चांद सिराहने होता है सब ख़्वाब तुम्हारे होते हैं.
जब मैं तन्हा हो जाता हूं फिर याद तुम्हारी आती है,
तब आंखें दिल औ जान तेरी दस्तक के सहारे होते हैं.
मैं बिस्तर पर लेटा लेटा बस ये ही सोचता रहता हूं,
इश्क के दरिया में फंसकर क्या नसीब किनारे होते हैं.
दिये की लौ धीमी होती मैं अक्सर देखा करता हूं,
पतंगों को आग तपाती है पर वो इश्क के मारे होते हैं.-