तुम्हारी आंखें, सब कहते हैं तुम्हारी आंखें खूबसूरत हैं
मुझे भी लगती हैं तुम्हारी आंखें खूबसूरत, बेहद
मगर मेरी आँखों को तुम्हारी आँखों से अधिक भाती हैं,
तुम्हारे चेहरे की मुस्कुराहट।
शांत, सहज और सुंदर।
तुम्हारी मुस्कुराहट,
भर देती है मेरे शिथिल तन में जान,
शून्य से मेरे जीवन को पूर्ण कर देती हैं,
और मेरे भीतर शांत हो चुकी इच्छाओं को
प्रेम का नया तान सौंपती हैं।
तुम्हारे चेहरे पर झलकती पवित्र सी मुस्कुराहट
मेरा मन मोह लेती हैं,
मुझे हर क्षण थोड़ा और तुम्हारा बना देती हैं,
अपना सब कुछ तुमपर समर्पित करने का
मुझको साहस देती हैं।
तुम्हारे मुख पर झलकती वो दिव्य मुस्कुराहट
मेरे जीवन को सार्थक करती हैं।
©शान्या-
#talesofaparanoid
हो जाए कभी नफ़रत जब मुझसे
एक एहसान मेरी अक़ीदत पर कर देना
तमाम मसलहतों के बीच तुम बस मुझसे नफ़रत करना।
नफ़रत मत करना उन लम्हों से, जिन्हें साथ हमने गुजारा था,
न करना उन तोहफों से, जिन्हें अलमारी में सहेजे तुमने रक्खा था।
न करना नफ़रत उन राहों से, जिसपर साथ चलके हमने एक मंज़िल तय की थी,
मत करना नफ़रत किसी भी चीज़ से, जिसने कहीं तो मोहब्बत को ज़िंदा रखा था।
क्योंकि तमाम दरारों के बीच,
ये किस्से, ये यादें, ये तोहफ़े, ये राहें, इनमें से किसी का कोई गुनाह नहीं।
हो सके तुमसे ये लाज़िम तो नहीं, मग़र गुज़ारिश है मेरी,
कि कल गर मुझसे नफ़रत हो जाए, बस मुझसे नफ़रत करना।
©कौशिकी (Shanya)
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इसे ज़हन की तब्दीली समझो
या समझ लो कि मैं अब संजीदा हो गया हूँ
मैं ख़ुद को बदल रहा हूँ
या शायद जो पहले था, वैसा बन रहा हूँ।
खुद को मिटा रहा हूँ या गढ़ रहा हूँ?
सच तो ये है कि मैं बेपरवाह होकर
अब खुद की परवाह कर रहा हूँ,
भूल कर सब कुछ, बहुत कुछ याद कर रहा हूँ।
मसरूफ़ियत में खुद को मशगूल कर रहा हूँ,
लिखकर तकदीर अपनी
उसे मिटाने की जहमत कर रहा हूँ।
हाँ, मैं अपनी ही डोर से बंधकर
खुद को इस जग से आज़ाद कर रहा हूँ।-
मैं जहां हूँ वहां अपनी ही बदौलत पहुंचा हूँ,
मैंने खुद को किसी और के आंगन में कैद कर रखा है।-
मेरा तुमसे बिछड़ जाना,
तुम्हारी नज़रों से बहुत दूर चले जाना,
मौन रहकर बस खुद को आत्मसात कर लेना,
और अंत में अंतहीन तीर्थ को प्रस्थान कर जाना।
विदित है, लिखित है और शायद समय की मांग के अनुसार एक रोज़ उचित भी।-
//पुरानी डायरी//
पुरानी डायरी बादल से भरे आसमान जैसी होती है,
जिसे हाथ में थामते ही, आंखों से आंसुओं की बरसात होने लगती है।
यादों में रिसते हुए डायरी के हर पन्नें,
हर पन्नों में लिखा एक-एक हर्फ़,
ज़हन को भिंगो कर रख देता है।
बचपन की कुछ तसवीरें, होस्टल के वो दिन
कहीं-कहीं से उठाए चिड़ियों के पंख,
सब आज भी सँजोये रखे हैं उसी पुरानी डायरी में।
दोस्ती के अनगिनत अफ़साने गाता गुनगुनाता,
डायरी का हर पन्ना मानो मुझसे सवाल करता है
'कि हालात अब इतने संजीदा क्यों हुए?'
'तुम्हारे सभी यार कहाँ गायब हुए?'
मेरी पुरानी डायरी के पुराने पन्नें
हंसते हैं मेरे हालातों पर।
रिसते यादों में बसते कुछ ख्यालात हैं
जो अब नहीं साथ उनके न होने का कोई ग़म भी नहीं,
मगर मेरी पुरानी डायरी और उसके हर पन्नें,
मुझसे कुछ सवाल करते हैं।-
हार कर लौटे हो?
जीतकर जाओगे।
ज़िन्दगी के मैदान में
हर कदम पर जंग है
कब तलक,
जंग लड़ने से घबराओगे?
हार कर लौटे हो?
जीत कर ही जाओगे।-
मेरे साथ और कितना बुरा करेंगे लोग,
मैंने मज़ीद खुद को ही तबाह कर डाला है।-
मैंने खुद को औरों में तलाश करने की कोशिश की
उनकी बातों में, उनकी यादों में, उनकी आंखों उनके लहजों में
मैंने खुद को औरों में तलाशने की कोशिश की,
मैं नाकाम रही, और एक दिन मैंने अपने आप को खो दिया
क्योंकि खुद को औरों में तलाश करते-करते,
मैंने खुद को उन जैसा बना दिया।
मेरी ये तलाश हर बार नाकाम हुई और कुछ इस कदर कि,
दर्द, ज़िल्लत और आंसुओं के अलावा मुझे कुछ नहीं मिला
आरज़ू पूरी तो नहीं हुई पर मेरे अंदर कुछ 'अधूरा' रह गया।
अपना सब कुछ हारकर मैंने कलम पकड़ी
और पन्नों को अपने शब्दों से स्याह कर दिया
शब्दों ने मेरी तलाश पूरी कर दी,,,,-