आज उन पुराने रास्तो से गुज़र कर
अपने कदमों के निशान फिर से ज़िंदा कर दिये मैंने — % &-
♥️
Be natural😊
Love- fact- romantic-emotions-true words🙃👈✌️
Always hu... read more
मन छन्न भर भोर फिर रात हुआ
चाँदनी का वो रूप जीवन मे रागिनी के साथ हुआ
***मुझे मिली हर्ष पल भर की
हाथों से फिसली रेत के कणो सी****
मेरे हिस्से का निर्मल जल भी अज्ञात हुआ
मन छन्न भर भोर फिर रात हुआ ।।
सूखे पत्ते चहक उठे मन के
हवाओं मे विचरती ध्वनि मात्र से
समझा, जिस वायु को साथी
हृदय से पात तोड़ने मे वही हुआ भागी
पंछियों का वो शोर उपवन मे
पहर दर पहर एकांत हुआ
मन छन्न भर भोर फिर रात हुआ!!!
#tiwaryShanvi **-
सचमुच कोई ख्यालात नहीं मिलते
है कुछ सवाल जिसके जवाब नहीं मिलते
इक टूटा इंसान हर तरफ से होता है ज़ख्मी
मग़र शरीर पे उसके निसान नहीं मिलते।
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लग जाए अगर आग तुम्हारे भीतर
तुम बुझाओगे या जलने दोगे
और ये जो घुट - घुट कर जीने की आदत है तुम्हारी
इसे बदलोगे या खुद को मरने दोगे
अब नहीं आएगी खबर उसके लौटने की
तुम दिल पे पत्थर रखोगे या सीने मे दर्द रखोगे
जो रखी है उस किताब मे फूल तुमने सदियों से
अब उसे आज़ाद करोगे या ताउम्र कैद रखोगे
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बड़े अरमान से बनाए गए अपने महल को
संतानो के लिए टुकड़ों मे बाँटना पड़ता है
इनके वृध्द आँखो को न जाने क्या क्या सहना पड़ता है
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दीवाने गम"
दीवाने गम की कहानी मै क्या कहूँ
मस्तमौले की जुबानी मै क्या कहूँ..
ओढ़ा हुआ था गम का चादर,
दर्द ए दिल की जुबानी मै क्या कहूँ..
लिखा करते थे मुक़द्दर का किताब रोज़ दिन..
कसमें खायी थी साथ चलने की,
उस बेइंसाफी की इबादत मै क्या कहूँ..
अब टुकड़े टुकड़े दिल के हो आए है
क्या कभी सागर भी नदियों के पास आए है..
बदलते हुए वक़्त की कहानी मै क्या कहूँ..
कहाँ से वो नजारा लाऊँ
गिना करते थे टिमटिमाते आसमान के तारो को,
ज़ुलफें और नजरों की कहानी मै क्या कहूँ..
दीवाने गम की कहानी मै क्या कहूँ
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हालात के मुताबिक ढलना कोई नहीं चाहता
मग़र अच्छे वक़्त सबको चाहिए
दुख के काले रातों को गुज़ारना कोई नहीं चाहता
मग़र सुख की रौशनी सबको चाहिए
सब चाहते है हमारे समाज मे बदलाव हो
मग़र स्वयं को बदलना कोई नहीं चाहता।
Shanvi-
जीत हासिल करने के बाद भी
कौन सा सुख मिलता है
जीवन का सफ़र तो फिर भी जारी रहता है
एक साथ बैठ कर भी
किसका अकेलापन दूर होता है
यहां सबका मन अंदर से तन्हा होता है
लाख आजमाइशो के बाद भी
किसके सारे अरमान पूरे होते है
दिल मे कोई ना कोई ख्वाब जरूर अधूरे होते है
बाहर से तो हर एक का चेहरा
हँसता - खिलखिलाता है
भीतर से आँसू पोछता खुद को छुपाता है
सिर्फ एक दिये की बाती से
किसका घर रौशन होता है
बिन परिवार के ये घर भी कहाँ घर होता है
यहां सबकुछ पा कर भी
कहाँ सबकुछ मिलता है
हर रोज़ मुसाफ़िर एक नए सुकून की तलाश मे निकलता है।
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ये वादा नहीं एक साथ था
महेज़ एक लफ्ज़ नहीं
उसमे बसता एक दिल था
जिसका दम घुटा है
एक वादा था जो अभी अभी टूटा है
एक पोटली थी उम्मीद से भरी
वो किसी अपने ने लुटा है
एक वादा था जो अभी अभी टूटा है
साँसों के धागे टूटते तो गिला ना होता
मग़र टूटा है एक घर जिसमे दिल था चैन से सोता
एक सपना जो अब टूटा है
एक वादा था जो अभी अभी टूटा है
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