सफर उनका नया नया है
वो अब जिस रास्ते पर चले है
हम उस मंजिल को छु कर आये है-
बाजारु लोगों के इश्क़ पे मातम ना करना
यूं समझना कि तुमने इश्क़ का
तजुर्बा वक्त और पैसे से खरिदा है..!-
तु भरोसा रख़ खुदपर
यंहा जो भी साऐंसा साथ खड़ा
वो एक दिन अकेला छोड़ चला
माता पिता एक पड़ाव तक
बाद में उनको भी किस्मत का अड़ा
तकदीर के आगे यंहा किसका चला
तु चल ख़ुद में भरके उम्मीद
जो यंहा थक्कान से हरा वो वहीं सड़ा
मंज़िल तक वहीं गया जो अकेला चला-
प्रेम आणि ओढ यात एक पुसटशी रेघ असते...
मनाला हवीहवीशी वाटणारी गोष्ट म्हणजे ओढ... ती कित्येक प्रसंगी कमी जास्त होत रहाते...
प्रेम तर ते असतं जे आईच्या कुशीत, गावाकडच्या मातीत आणि आपल्या मायबोलीत मिळते...
एकांतात आठवतो तो ओढीने साधलेला क्षणिक काळ तर दाहीदिशांच्या गोंगाटात प्रेमाची हलकीशी चाहूल देखील मन सुन्न करून जाते... प्रेमात दुरावा असला तरी ते निशब्द आणि निखळपणे वाहात रहाते...
प्रेमाची ओढ लागते पण ओढीने प्रेम मिळत नाही...
"मराठी राज्य भाषा दिनाच्या हार्दिक शुभेच्छा"-
तुझसे नाराज़ हूँ ऐं जिंदगी मैं
तुझ से नाराज़ हूँ ऐं जिंदगी मैं
जबसे वो शख्स मुझसे जुदा हो गया
तुझ से नाराज़ हूँ ऐं जिंदगी मैं
मरना ना गवार है मुझको
और जीने के ख्वाइश भी नहीं
ये कैसी जद्दोजहद है ऐं जिंदगी तेरी
सांसें तो है पर मैं जिंदा भी नहीं— % &-
ग़म के आंसु ना छलक जायें कंही आंखों से
इसलिए कड़वा जाम लगाया होंठों से
बेदर्द ज़माना दिल का ग़म ना जाने
बस कहा इन्हें तो प्यारे मैंखाने— % &-
है
ये बस प्यारा-सा भ्रम है
पर उम्मीद पे सब क़ायम है
ज़ी लें जिंदगी तुझ में भी दम है-