कुछ काम थे अपनी मर्ज़ी के
कुछ काम फकत मजबूरी थे
फिर वक़्त बहुत ही थोरा था
और सारे काम ज़रूरी थे !!!-
तुम अधूरी ख्वाईश बन कर, मेरे सामने से गुज़रना
मैं मासूम बच्चे की तरह, निहारूँगा तुमको!!!-
जहाँ तक मतलब है जहाँ को
वही तक मुझको पूछा जा रहा है
ज़माने पर भरोसा करने वालो
भरोसे का ज़माना जा रहा है-
कभी तो हम सब जानते हुए भी खामोश रहते हैं
कभी हमे कुछ पता भी नही होता और इश्तेहार छप जाता-
इबादत को एहले खल्ल पड़ी
जब आज तुम पर नज़र पड़ी
तब लगा ,मानो मेरी आंखों ने
आजतलक महज़ झूठ ही देखा हो
और तुम जैसे
किसी वक़्त की दरीचों
से झांकती हुई कोई सच ।।।
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चार शब्द अब काग़ज़ पे रदीफें लगने लगे हैं
नज़रें तुम्हारी बे-अदबी
वादे लतीफ़े लगने लगे हैं !!!-
वो रोशनी के कारोबार करने वाले
अब करे गुज़ारा किस के सहारे
दिवाली बीत गयी अब
दिए बुझ गए सारे!!!-
मेरे कांधे पर सर नही रहने देगा किसी दिन
यही जिसने मेरे कांधे पर सर रखा हुआ है..!!-
देख लइनी बॉम्बे दिल्ली
बिहार सन ना देखली दुजा प्रिये..
हम छी पटना के दीघा घाट सन
आहा जना छठ पावन पूजा प्रिये!!!-
आप बस किरदार हैं
अपनी हदे पहचानिये
वरना फिर एक दिन
कहानी से निकाले जायेंगे!!!-