एक वक़्त था, जब मरे छूने से
जागते थे दफ़न ए ख्वाब उसके
और आज ये आलम है
मेरा छूना उसे महज छूना लगता हैं !!!-
ख्वाइशों को ज़रूरतों के हाथो खून होते देखा हैं
मैंने सर्द दिसंबर को जून होते देखा है!!!-
आज कुछ ऐसे जल रहा हैं एक शायर
जैसे अंगीठी हो कोई
एहसासों की तपिश मे सुलगते रहते हैं
कोयले यादों के ..!!!-
कर के गुमां इश्क़ पर
मात खा गए आखिर
बना कर खुदा उसे
मात खा गए आख़िर
जितने वालों ने शहर जीते
हम थे इश्क़ मे
और मात खा गए आखिर-
तुम्हारे किस्से,
मेहफ़िलों मे मुहजबानी होगए हैं
दास्तां सुनाने वाले लोग
अब खुद में कहानी हो गए हैं!!-
अपने इन निगाहों मे
कितने ख्वाबों को सहेज़ रखा है
सुनो..
वो हरी कमीज़ वाली तस्वीर
कितनों को भेज रखा हैं.!!!-
सब मौसम के Fail को दई छई
जारक् मौसम मे आहाके छत पर
आइब् के केश सुखेनाइ..-
खुद से वो कौन से शिकवे है की जाते ही नहीं
अपने जैसो पे यकीन क्यु नही आता है मुझे
-
मैं वो सुकून हु, जो तेरे काम का नही है
तु वो शोर हैं, जो मै मचा नही सकता!!!-