वे ज्यादा सोचते नहीं
जिन्हें कुछ करना होता है
और जो बस सोचते रह जाते हैं
वे ज्यादा कुछ कर नहीं पाते हैं
सोचने और करने के बीच
जितनी कम दूरी होगी
कार्य उतना ही परिलक्षित होगा
निर्णय कोई भी उचित या अनुचित नहीं है
उसे उचित या अनुचित बनाती है हमारी
दृढ़ता, संवेदनशीलता और कर्तव्य- परायणता
जीवन के प्रति दृष्टिकोण, और लक्ष्य के प्रति निष्ठा
इन सबका मिश्रण भर देता है
उपलब्धियों में सुगंध और अपनेपन में शाश्वतता
और फिर निर्णय बस होते रहते हैं
और लक्ष्य प्राप्त होते रहते हैं
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