मिलना था तुमसे,
पर पता नही,
तुम पहले आओगे या
पारिजात पहले खिलेगा।
कोशिश करना कि आ सको
शरद ऋतु जाने से पहले,
ताकि तुम्हें भेंट कर सकूंँ
सर्दी की धूप सा खिला
एक पारिजात,
बिल्कुल तुम जैसा..।
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आज मातृ दिवस पर
क्या लिखूं मांँ के लिए?
सोचती हूंँ,
मांँ को भी लिखा जा सकता है क्या?
मांँ ने ही तो है खुद मुझे लिखा,
नौ माह गर्भ में रख कर उसने
क्या कुछ नहीं सहा।
सोचती हूंँ,
मांँ के हर एक त्याग को
शब्दों में समेटा जा सकता है क्या?
मेरे पास शायद नहीं हैं वो शब्द
जिनमें मांँ को व्यक्त कर सकूं।
अतः बस प्रणाम है हर मांँ को
'मांँ' होने के लिए...-
हम मध्यम वर्ग के लिए
जीवन का सच्चा प्रेम होती है,
'एक अच्छी नौकरी'।
इस आवश्यकता जनित प्रेम के आगे
भावनात्मक प्रेम तो हार ही जाता है कहीं।-
इच्छाओं को मारते मारते आखिरकार
एक दिन उनका बिल्कुल खत्म हो जाना,
हंसते खेलते मनुष्य का,एक बुत में बदल जाना,
होता है भयावह.....— % &-
बुरा नहीं चाहते बच्चों का कभी पिता,
बस समय के साथ भाग नहीं पाते पिता कभी-कभी
और बच्चे पिता के साथ पीछे जाना नहीं चाहते
क्योंकि वे तो निकल जाना चाहते हैं खुद से भी आगे,
बस यहीं से शुरू होता है द्वंद अंतर्मनों में
पिता और बच्चों के और
जब तक पिता समझते हैं बच्चो की बात
और बच्चे पिता के मन को
तब तक बहुत देर हो चुकी होती है शायद।— % &-
एक छोटा सा वाक्य,
"तुम तो समझदार हो।"
जीवन की बहुत सी खुशियां छीन लेता है।— % &-
माना कि सबूत बहुत हैं उसके पास तुम्हें अपना कहने को,
पर क्या
तुम्हारी कलाई का उतरा वो कंगन है उसके पास??— % &-
तुम तो नदी की वो धारा हो
जो एक दिन समंदर में मिल जाओगे।
मेरा क्या है,मैं तो एक किनारा हूंँ
जिसे छूकर के तुम बस निकल जाओगे।
मैं तो मात्र एक ठहराव हूंँ,जहाँ कुछ पल रुक कर
एक दिन तो तुम उसी के हो जाओगे।
करती रहती हूंँ तुम्हारा इंतजार जानते हुए भी,
कि अंत में तो तुम अपने ठिकाने पर ही जाओगे।
सब कुछ जानते हुए भी रखा है खुद को भुलावे में,
क्योंकि तुम मुझमें इस कदर हो कि कभी निकल नहीं पाओगे।— % &-
किसी साल एक रोज
तुम सिर्फ मेरे थे
फिर एक साल एक रोज
तुम उसके हो गए।
समझ ही नहीं आता किसकी मानू़ँ
मेरा दिल और तुम दोनों ही कहते हैं
कि तुम सिर्फ मेरे हो
पर वो और ये दुनिया
दोनो ही कहते हैं
कि तुम सिर्फ उसके हो।
सवाल जब भी उठता है
कि तुम किसके हो,
वो दिखा देता है सबूत में
चूड़ी,बिंदिया,सिंदूर ये सारे।
पर मैं कहांँ से लाऊंँ सबूत ,
मैं तो दिखा भी नहीं सकती,
वो कंगन वो खत तुम्हारे पुराने।
— % &-
तुम आए,
एक वादा किया
कि फिर आओगे मुझे लेने
और तुम चले गए।
फिर कुछ अरसे बाद
तुम फिर से आए
कुछ समय के लिए
और इस बार चले गए
वादा करके,
कि तुम आते-जाते रहोगे
और मेरा जीवन बस
घूमता रहा इसी के इर्द गिर्द
कि तुम आते जाते रहोगे।— % &-