कैसे जाना है कहां जाना है क्यों जाना है मैं चलती जा रही हूं मुझे पता कुछ भी नही मैं अब किसी भी तरह समझौता नहीं कर सकती या तो सब कुछ ही मुझे चाहिए या कुछ भी नही!
जो मेरी बराबरी से नहीं डरा मेरी बराबरी के लिए भी लड़ा जो खुलकर मुस्कुराया भी में चिल्लाई अगर तो चिल्लाया भी मैं रोई तो रोया भी मेरे कंधे में सिर रखकर सोया भी जो मेरे पंख देख घबराया नही मैं उड़ी अकेले तो डगमगाया नही मैं फिसली जब तो मुझे उठाया भी आंखों को मेरी सहलाया भी जिसने कभी रोटी पकाई भी मैं थककर सो गई तो जगाकर अपने हाथो से खिलाई भी जिसने बेवजह खुद को मुझसे ऊपर जाना नहीं वो, वो नही जिसने मुझे पहचाना नहीं!
शिव जी के बारे में पढ़ते हुए मैने पाया की वो अपने गले में एक सौ आठ सिरों की माला पहनते थे, और उसमे सारे सिर माता पार्वती के एक सौ आठ जन्मों के थे अर्थात जब पार्वती नही थी तब भी वो उनके पास थी! जहां आजकल लड़के लड़कियां जब तक छह लोगो के साथ प्रेम में पड़कर सातवे व्यक्ति के साथ सात फेरे नही ले लेते तब तक उन्हें प्रेम का वास्तविक मतलब समझ नही आता ! वहीं दूसरी ओर अपने ही ईश्वर द्वारा प्रेम के प्रति ऐसा समर्पण, इंतजार, सुकून देखकर हृदय भाव विभोर हो जाता है वास्तविकता में प्रेम पर बस एक व्यक्ति का ही जन्मों जन्मों तक अधिकार होता है!