क्यों? महकता है, मुस्कुराहटों का गम। ओ री चिड़िया, ऐसे ही गुनगुना तू बादलों के संग। मन उलझा है, सूखे रंग में। क्यों हैं? कोरे कागज़ सा, तेरा तन्हा मन रे।।
दिल टूटा कभी तो तकिया भिगोए रोए हैं मुश्किलों में जब ढूंढा तुम्हें तन्हां अकेले हम सोए हैं रिश्तों में आई मायूसी तो गमों के साय में लिपटे हुए हैं फूलों के इस बसंत में फिर पतझड़ से हुए हैं।।
एक धोखा था इन आंखों में जो अब ओझल हो गया रिश्ता था जो ताउम्र साथ रहने का कुछ स्याही की बूंदों में ही सिमट गया नहीं गुजरी थी तो वो बस यादें ही थीं देखो दिल की कश्ती से आज वो भी उतर गईं।।
पानी के बुलबुले को बनाता सौराष्ट्र के लिए महान करता गुजरता और अंधेरों से निकल ठहरे दरिया में तू न ठहर मुश्किलें हों तो डगर कठिन न समझ आगे बढ़ बस तू आगे बढ़..