आ गए हैं वो जीत कर इस दुनिया की जंग को.
पर हिम्मत नहीं हैं इतनी कि बढ़ के माथा चुम लूं-
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कभी कभी खो जाना भी
बेहद़ जरूरी होता है,
सब कुछ खोकर
खुद को पाने की खुशी,
दिल को बहुत सुकून देती है।-
बोझ से भरी जिंदगी.
जिंदगी में जिंदगी नहीं.
नहीं है कोई अपना तो न सही.
शब्द ख़ंजर है अमृत नहीं.
अमृत कह कर दिया है विष.
विष जिसका कोई तोड़ नहीं.
नहीं है आस अब कोई.
कोई और पीर है अब हमें.
ये मसला कोई और है यार.
अब मसला ये मोहब्बत का नहीं.-
इन्तज़ार...
इन्तज़ार...
इन्तज़ार...
इन्तज़ार...
इन्तज़ार...
इन्तज़ार...
इन्तज़ार...
इन्तज़ार...-
बस एक क़दम और...
...
कि अब जब मंजिल इतनी करीब है.
तो तुम यूं हौसला क्यों खो रहे ???
गिनती के बस कुछ क़दम और है पागल.
तुम क्यों बिना लड़े ही हार मान कर रहे ???
तुमसे ही तो सिखा है कि लड़ा कैसे जाता है.
कि गिर-गिर हर बार खुद ही उठा कैसे जाता है.
अब इतना सब सह चुके तो थोड़ा और सह लो.
बस एक जंग और है बाकी है.
एक बार फिर से लड़ जीत लो.
उठाओ अपनी ढाल-तलवार बढ़ चलो.
अपने राह की हर मंजिल को अब जीत लो.-
Dayri के उन पन्नों को पलटा तो एहसास हुआ.
कि अच्छा हुआ जो तुम छोड़कर चले गए.
बेपनाह मोहब्बत का यही ह़स्र होना चाहिए.-
ख़फा ख़फा से है हम थे.
वफ़ा वफ़ा की तलब थी.
तलब ऐसी कि हम फ़ना हो गये.
ज़फा ज़फा सी मोहब्बत उनकी.-
लिख तो दूं ग़ज़ल पूरी की पूरी उस पर.
पर अगर वो पास बैठ कर न सूने.
तो क्या फायदा...-