वो कहता...
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मेरे शब्द कब मेरे होते है?
ये मेरे भाव हैं, जो कविता, कहानी या फिर... read more
अब सोचती हूँ तुम्हारा क़र्ज़ मुआफ़ कर दूँ!
मेरी उदासियों का क़र्ज़,
तुम क्या ही चूका पाओगे ?
क़र्ज़ चुकता तब, जब तुम उन्हें समझते !
तुम मेरा सूद तो क्या,
मूल भी नहीं चूका सकोगे !
सूद के फेर मैं, अपने मोल को बार बार
कम से कमतर करती रही !
ये सही तो नहीं !
मुझे रहना तो ख़ुद के साथ है !-
तुम्हारे नाम था..
यही सोचा था मैंने..
न जाने कब पूरा घर तेरा हो गया!-
जानती हूँ ,
ज़िन्दगी सबक सिखाती है
कदम कदम पे!
पर काश !
हमने जो सबक सीखे,
वो तुमसे तो न मिले होते!
बहुत दुखता है!-
वही सब हो रहा है, जिसका था डर
ख़तम हो रहा है तेरा अब असर !
भाव घट रहे है, भावना घट रही है !
ह्रदय से संवेदना मर रही है !
संज्ञा शून्य हूँ इस तरह जैसे ,
नसों को मेरी मानो एक सर्द शाम जकड रही है !
दर्द तो है मगर आंसू न झर रहे हैं !
एक पथराई निगाह लिए बस दर ब दर हैं!-
तुझसे दी दूरियों का दर्द मुझे,
कई गुना ज़्यादा महसूस हुआ
जब मैंने ख़ुशी का कोई लम्हा पाया
औ'
वो तुझसे साझा न हो पाया !-