तुम्हें ज्ञात था मेरा सबकुछ....
फ़िर भी मन की व्यथा को...
तुम समझ न पाए....
बना लिया था हमने अपनी ज़िंदगी तुम्हें..
और एक तुम...
जो मेरे कभी हो न पाए.....
था मेरा तुम संग रहना मुश्क़िल...
ग़म-ए-ज़ुदाई भी सहना मुश्क़िल...
अरे! दिल-ए-दास्ताँ भी सुनानी तुम्ही को...
और तुमसे सब कुछ कहना मुश्क़िल....
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कुछ ख़ास रिश्ता है कलम और इन पन्नों से जिससे बयाँ करती हूँ कुछ मन के अल्फ़ाज़ अपने..... read more
सावन की अँधेरी रात जब , वो चंद कलियाँ मुस्कुराती थी।
हर दिए वो पुराने ज़ख़्मों-दर्द , मुझे सारी रात जगाती थी।।
माना चल न सकती थी , मै दो कदम तुम्हारी तरफ़।
आ जाते तुम्ही किसी बहाने से , गर तुम्हें मेरी याद सताती थी।।-
ख़ुद के जीवन के किताबी पन्ने.....
वह ख़ुद ही पलट कर पढ़ती हैं.....
ख़ुद ही कर ख़ुद की कुछ बातें....
वह ख़ुद ही ख़ुद की सुनती हैं......
हो न 'बैर' किसी की राहों पे.....
ख़ुद के पथ पर ही चलती है....
एक 'कान्हा' उसके मीत हैं.....
न उन बिन ज़िंदगी समझती है....
न है इस जग से प्रीत उसको.....
कुछ यूँ साधारण सी वो लड़की है....
✍️✍️-
हे मेरो कान्हा! , हे मुरलीधर!
मेरी तो श्याम! , कछु बस की रही न.....
मेरो बहुत , जियरा घबराए....
कान्हा! , तुम बिन रहा न जाए.....
असुवन से भीग , यो तन-मन मेरो...
मोपे तू कान्हा! , क्यूँ तरस न खाए...
"कान्हा! तुम बिन जिया न जाए.."
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सुनो! 😔
स्टोर रूम में पड़ी.....
उस उलझी हुई सी.....
रस्सी की तरह........
कुछ उलझ सी गई है......
"ज़िंदगी"-
अक्सर...
लौह की ज़ंजीरों से ,
न बँधे होकर भी हम.......
जकड़े होते हैं एक बंधन में ,
न होकर ख़ुद में स्वतंत्र.......
स्वैच्छिक........
नाचते हैं दूसरों के इशारों पे ,
देकर डोर अपनी ज़िंदगी की उन हाथों में........
घोट देतें हैं गला अपने ख्वाहिशें और ,
उन तमाम अरमानों का ........
फ़िर होकर भी दिन के उजालों में ,
ताउम्र भटकते हैं अपने..........
"अंदर के वीरानों में".........
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तुझ संग बिताए वो हर पल ,
साहब! मुझे याद आते हैं....
बैठ जाती हूँ अक्सर उठकर
रातों में ,
तुझसे दूर जाने के ख़्वाब
मुझे बहुत सताते हैं....
कैसे बताए तुझे इस दिल का हाल ,
न जाने कितने दर्द दबाए बैठे हैं....
अपने ख्वाबों में, अपनी हसरतों में
तेरे संग हसीं दुनिया बसाए बैठे हैं.....-
"आदेश" शब्द का भी
अपने आप में कुछ "महत्व" है...
इसे हर कोई अपने जीवन में
उपयोग नहीं कर सकता....😊
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"आप"
सभी तरह के अनुभव व अंतरदृष्टि,
हम सभी से साँझा करते हैं..... 😊
इसके लिए हम सब मिलकर,
आपका आभार व्यक्त करते हैं......🙏
माना! कभी सख़्त हुए हम पर,
पर वो था सिर्फ़ सिखाने के लिए.... 🙎♂️
हर कठिन पथ पर चलना कैसे है?
हम सभी को यह बताने के लिए.... 🏃♂️
आपके संदीपन से,
इन शब्दों को मैंने फ़िर आज बोया है.... 🌱
कर संगृहित कोरे पन्नों पर,
इस काव्य माला को पिरोया है.....📝
बाहर से थोड़ा सख़्त,
मग़र दिल के बड़े प्यारे हैं.....❤
जी हाँ! ये कोई और नहीं,
"Batra" सर हमारे हैं...... ✍️-
इन हाथों की शोभा बढ़ाने वाली...
खिलती मेहंदी का रंग......
और फ़िर कुछ ही दिनों में......
उन्हीं हाथों की शोभा कम करने वाली.....
उतरती मेहंदी का रंग भी.....
गवाह है कि.....
कुछ लोग कुछ पल के लिए....
ज़िंदगी में.....
खुशियाँ लेकर आयेंगे ज़रूर......
मग़र जब जायेंगे न.....
तो तुम खुद में हर पल झाँकोगे.....
और ताउम्र पछताओगे
"बेरंग" ज़िंदगी के लिए...
न रंग चढ़ने के "सुख" का एहसास. . .
और न तो कोई रंग उतरने का.....
"दुःख ".........-