प्रेम पथ सरल है तो इसमें इतना
छल कपट कैसा।
मिज़ाज़ इश्किया हो तो किसी एक से
तुम्हें प्रेम कैसा।
बहुत पाख है,मोहब्बत तो इसमें किसी के
साथ होने वाला छल कैसा।
जिसने मोहब्बत निभाने की कोशिश की
उसके साथ ये चालबाज़ी कैसा।
सुना है....प्रेम खूबसूरत बहुत है,तो ये
कुछ लोग रो-रो के शिकायत करते हैं
अपने महबूब की तो प्रेम पे लगा ये दाग कैसा।
प्रेम पथ इतना सरल है तो इसमें ये छल कपट
मोह तृष्णा कैसा।
प्रेम खूबसूरत बहुत है तो प्रेम के बाद ये होने
वाला नफरत कैसा।
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