आज बैठे- बैठे सुबह से शाम हो गई...
कभी मैं बाहर झांकती, कभी बाहर मुझमें झांकता
कभी मैं चाय पीती, कभी चाय मुझे पी जाती
कभी मैं शोर मचाती, कभी शोर मुझे शांत कर जाता
कभी मैं नींद ढूंढती, कभी नींद मुझे ढूंढ ले जाती
कभी मैं अपनी साँसों को गिनती, कभी साँसे मुझमें खुद को गिन जाती
इस छुपने- छुपाने,
गिनने- गिनाने में...
आज फिर मैं और मेरी कशमकश घंटों साथ थे।🖤
-