Shalini Mishra Tiwari   (Shalini Mishra Tiwari)
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Joined 14 March 2020


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Joined 14 March 2020

नींद से कोसों दूर हैं मेरी आँखें
है इंतज़ार किसका
किसकी तलाश है
दूर तलक बस एक खामोशी
जो बन बैठी है मेरी आली
जागती रातों में बुन लेती हूँ
कितने सपने
मना लेती हूँ सपनों की दिवाली
खो जाती हूँ खुद में ही कहीं
सजा लेती हूँ अपनी दुनिया

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2 MAY AT 23:44

रात का वादा था मुझसे
लेगी हमें आग़ोश में अपने
करेगी दूर थकन दिन की
कराएगी महसूस
अपने होने का एहसास
पर
औरों की मानिंद
तेरा वादा भी झूठा निकला
न तूने लिया आग़ोश में
न दी मखमली एहसास अपना
और गुज़र गई तू भी
मुझे तन्हा छोड़कर

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1 MAY AT 22:45

हमारा अधूरापन
बिल्कुल उस चाँद की तरह है
जो तन्हा सफर करता है
नितांत अंधेरे में
और बयाँ करता है
ख़ामोश सी कहानी
हमारा अधूरापन
उस नदी की तरह है
जो कितने निर्जनता से होकर
बहती है

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1 MAY AT 17:52

वक़्त से हारकर यहाँ
कौन जीत पाया है
वक़्त ने सबको
अपना खेल दिखाया है
हुई नहीं हमसे जो कभी गलतियां
उनका भी अपराधी हमको
वक़्त ने बनाया है
कर न सके कभी हम
दिखावा जज़्बातों का
वक़्त ने हमकों
वो चोला पहनाया है

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28 APR AT 23:06

जब करनी हो ख़ुद से बातें
जब नहीं सुहाती यादों से मुलाकातें
जब थक कर चूर हो मन
जब हो खुशियों से अनबन
जब नितांत रिक्त हो जीवन
जब वीराना सा हो उपवन
जब लम्हा इंतज़ार का भारी हो
जब खुद से संघर्ष की बारी हो
जब भीगी आँखे पथराई हों
जब मजलिस में तन्हाई हो
तब सन्नाटा अच्छा लगता है
तब सन्नाटा अच्छा लगता है

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25 APR AT 13:07

शीर्षक -" जीवन
 कुछ जीवन का कोलाहल है,
कुछ उलझे ताने - बाने हैं।
कुछ पीड़ा की गहराई है,
कुछ पतझड़ की अमराई है।
कुछ सपनों के रेले हैं,
कुछ हम भी पूरे - कुछ अकेले हैं।
कुछ सूखा-सूखा सा मन है,
कुछ खाली - खाली भी सावन है।
कुछ मुरझाई सी यादें हैं,
कुछ भूली सी बातें हैं।
कुछ एहसासों की आंधी है,
कुछ डोर प्रीत की बांधी है।
कुछ अनकहा समर्पण है,
कुछ जीवन का शेष अर्पण है।
कुछ बेबसी की लकीरें हैं,
कुछ रिश्तों की जंजीरे हैं।
कुछ रेत सा फिसलता जाता है,
कुछ समय गुज़रता जाता है।
कुछ हम भी आस लगाए हैं,
कुछ अपनी ही हंसी उड़ाए हैं।।

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23 APR AT 23:47

मन भरा भरा हो जाता है
जब तुझको कोई समझ न पाता है
हूँ इंसान की नस्ल मैं भी
क्यूँ मशीनों में आँका जाता है
नहीं बोलती कुछ तो क्या
मुझमें बची सम्वेदना नहीं
किसी गलत व्यवहार पर
क्या हुई मुझे वेदना नहीं
हर आँसू के कतरे में
छलक गया मन का उद्गार
अंतर छलनी हो जाता है
जब होता है दुर्व्यवहार

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19 APR AT 23:35

लम्बी सी इक रात कटती नहीं
खामोशी भी अब बात करती नहीं
कितना तन्हा है ये सन्नाटा भी अब
स्याह सी चादर क्यूँ हटती नहीं
जुगनुओं की मानिंद थी उम्मीद कहीं
खो गई अंधेरे में अब नींद कहीं
गलतफहमियों का शिकार हुए हम
उनके दिल में जरा भी प्रीत नहीं
हो जाने कब अब सवेरा आस नहीं
बात कोई भी मेरी अब खास नहीं
कब होगा बसेरा अब न सोचता दिल
कैसी भी खुशियां हो अब रास नहीं
अब रास नहीं।।

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17 APR AT 23:28

बात नहीं करती है रात
बस छुपा लेती है
मेरे शब्दों में छुपे अर्थ को
और महसूस कराती है
कि तू कितना तन्हा है
अकेली है मेरी तरह
रात भी अंधेरे सी स्याही
में लिपटी है
पर बात नहीं करती रात
नहीं देती ज़ाहिर होने
अपने जज़्बात सबके सामने
गुम-सुम सी मासूम
डुबों लेती है ख़ुद में
और देती है पनाह किसी
अपने जैसों को

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16 APR AT 12:28

करता है मन कि भूल के जहाँ
लिपट जाऊँ तुझसे
सम्हाल लो मुझे तुम
अपने बाजूओं में
कसक रहा है बहुत मन
थाम ले धड़कते दिल को

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