किस्मत के अजब रंग थे, जो हमें विदाई देनी पड़ी। पर हम भी विरले दोस्त हैं, किस्सों, कहानी और कविताओं में तुम्हें जिंदा रखेंगे। तुम्हें नाज होगा, अपनी दोस्ती पर ऐसा एक कारवां बनाएंगे।
हर कोई भूल जाता है, और मुझे सब याद रहता है। सब आगे बढ़ जाते हैं, और मैं तन्हा खड़ी रह जाती हूँ। सब दुनियादारी निभाने को कहते हैं, और मैं बस इंसान बने रहना चाहती हूँ। सब अपनी दुनिया में मगन है, और मेरी दुनिया तो बस एक छोटा सा आंगन है।
समेट रहीं हूँ, इस घर की अनगिनत बातों और यादों को। तिनका-तिनका करके बनाये, इस प्यारे घरौंदे से , जाने कब उड़ जाना है। जो न था, मेरा कभी, उससे कैसा मोह, अपना तो जीवन ही बंजारों जैसा है।
जो स्त्री-विरोधी होते हैं, वो भी तो झुकते होंगे, अपनी माँ के सम्मुख। जिन्हें स्त्री जाति ही सभी दुखों का कारण लगती होगी, क्या वो कभी अपनी बेटी के आंखों में आंसू देख पाते होंगे? जिन्हें नाज़ होगा अपने पिता के नाम पर, चोट लगने पर शायद मां को ही याद करते होंगे। विरोध हो,तो एक अकेले से हो, न की पूरी जाति से।