Shaleen Ashdhir  
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https://www.instagram.com/shaleen_ki_kalam_se/
Joined 15 September 2018


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24 MAR AT 9:24

ज़िन्दगी के हादसों से कुछ इस तरह लड़ना है
माँ बाप की फ़िक्र को फक्र में बदलना है

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7 MAR AT 3:30

पहले डरावनी सी लगती थी,अब सुहानी हो गयी है
मेरी रातों से दोस्ती हो गयी है

दिल सेहम सा जाता था अंधेरों मैं कभी
अब सन्नाटे से आशिक़ी सी हो गयी है
आधी रात की ख़ामोशी जब दुनिया सोती है
मुझे जागने की आदत सी हो गयी है
मेरी रातों से दोस्ती हो गयी है

अकेली रात, सिर्फ अपना साथ
तन्हाई से गुफ्तगू, मन को सुकून दे रही है
सूने आकाश मैं चाँद तारों को तकना भी एक नशा है
धीरे धीरे मदहोशी सी हो गयी है
मेरी रातों से दोस्ती हो गयी है

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1 FEB AT 0:48

मेरी आँखों में ग़म कोई देख न पाया
मुझे होंठों से हाल-ए-दिल कहना पड़ा

हस्ता चेहरा लिए फिरते रहे महफिलों में
घर आकर तन्हाई मैं आंसुओं को बहना पड़ा

एक मोहब्बत का घर बनाया था साथ मिलके कभी
टूटे रिश्तों की सीलन से उसे डेहना पड़ा

वो जाते जाते मेरी खुशियों के पर भी ले गया
अब मायूस परिंदे सा पिंजरे में मुझे रहना पड़ा

इस खुदगर्ज़ी और छल कपट की दुनिया में
शराफत को हर ज़ुल्म सहना पड़ा

दौलत के नशे में जो सर उठाये फिर रहे हैं
भूल गए हैं खुदा की अदालत में हर सर को झुकना पड़ा

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31 JAN AT 2:01

क़ैद हूँ एक सोने के पिंजरे में
किसी नगीने सा अंगूठी मैं जड़ा हूँ मैं

वो ही शख्स मुझसे लड़ के चला गया
जिसके लिए पूरी दुनिया से लड़ा हूँ मैं

टूट गए कई रिश्ते मेरे उसूलों के खातिर
खुद्दारी की ज़िद पे फिर भी अड़ा हूँ मैं

ये बड़े शहरों की मक्कारी मेरी शराफत नहीं छीन सकती
अपने गाँव की जड़ों से अब भी जुड़ा हूँ मैं

मंज़िल पाना मेरी मंज़िल नहीं थी
नयी राह की खोज मैं फिर निकल पड़ा हूँ मैं

लाख कोशिश कर लें मुझे गिराने की ये अँधियाँ
किसी मज़बूत पेड़ सा तूफ़ानों मैं खड़ा हूँ मैं

ज़िन्दगी के हादसों से कैसे हार मान लूँ
बेटा घर का सबसे बड़ा हूँ मैं

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26 JAN AT 3:39

जब तक छाँव थी साथ दिया सफर में
धुप निकली तो साथ न चलने के बहाने निकले

जब मैं टूटा तो नए दोस्त न थे
मुझे सँभालने वाले दोस्त पुराने निकले

यूँ ही नहीं छोड़ता कोई अपना घर,अपना गाँव
मजबूरी में लोग शहर कमाने निकले

सुना है डूब जाता है सच झूठ के समुन्दर में
क्योँ हम अपनी कश्ती डूबाने निकले

अब मन नहीं लगता महफिलों मैं
कोई बताये कहाँ मन को बहलाने निकले

अब शराब भी असर नहीं करती
अब कहाँ पीने पिलाने निकले

ये खुदगर्ज़ी और चका चौंध की दुनिया है
ये बात समझने में ज़माने निकले

थोड़ी से रौशनी के खातिर कुछ लोग
अपना ही घर जलाने निकले

दौलत से खरीदने चला है खुशियां नासमझ
कोई सहरा जैसे सागर की प्यास बुझाने निकले

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24 JAN AT 3:50

एक वक़्त था जब आपस मैं सुलझाए जाते थे मसले
इस नये ज़माने मैं कोर्ट कचहरी जाने का चलन हो गया
एक पुराना रिश्ता आज कागज़ों में दफ़न हो गया

अब कोई हक़ नहीं रहा एक दुसरे पर
अब ना तुम मेरे रहे ना मैं तुम्हारा
आज हमारा क़िस्सा भी खत्म हो गया
एक पुराना रिश्ता आज कागज़ों में दफ़न हो गया

प्यार हार गया दौलत के आगे
सात जन्मों का नाता कुछ सालों में खत्म हो गया
बस एक दस्तख़त मोहब्बत का क़फ़न हो गया
एक पुराना रिश्ता आज कागज़ों में दफ़न हो गया

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21 JAN AT 2:33

सूरत के आगे सीरत का मोल गिरते देखा है
दौलत के आगे मोहब्बत को हारते देखा है
अब क्या बतायें क्यूं उठ गया यकीन दुनिया से
मैंने रिश्तों को बाज़ार में बिकते देखा है

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16 JAN AT 0:07

ज़िन्दगी के सफर में गिरा भी टूटा भी
खुदी को समेटा खुदी को उठाया है
मैंने तन्हाई को दोस्त बनाया है

अब दूसरो से उम्मीद नहीं रखता
खुद पे भरोसा दिखाया है
जागती रातों के अंधेरो में
उम्मीद का दिया जलाया है
मैंने तन्हाई को दोस्त बनाया है

कोई किसी का साथ नहीं देता
धुप मैं साया भी साथ छोड़ता पाया है
तो क्या हुआ के कोई हमसफ़र नहीं
खुद को अपने पैरों पे खड़े रहना सिखाया है
मैंने तन्हाई को दोस्त बनाया है

अब शोर शराबों मैं मन नहीं लगता
ख़ामोशी से दिल लगाया है
मैं,आइना और आईने में मेरा अक्स
हमने एक दुसरे का बखूबी साथ निभाया है
मैंने तन्हाई को दोस्त बनाया है

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13 JAN AT 2:08

ग़लतफ़हमी थी एक वादा ही काफी है साथ निभाने के लिए
ए दिल मत हो उदास, वो आया ही था जाने के लिए

एक वक़्त था जब हम जान थे एक दुसरे की
अब वो भूलना चाहती है मुझे, मैं भी दुआ करता हूँ उसे भुलाने के लिए

इस नए दौर मैं रूठना तो सोच समझकर रूठना
आता नहीं अब कोई मानाने के लिए

बड़ा गुरूर है उसे अपनी रौशनी पर
कोई बताए उसे एक हवा का झोंका ही काफी है दिया भुझाने के लिए

बड़ी मुश्किल से मिलते है वो दोस्त जिनसे दिल की बात कर सकें
अब दोस्त मिलते तो हैं, पर बस पीने पिलाने के लिए

एक झूठी उम्मीद थी, कोई तो समझेगा मुझे
जो आया वो आया बस समझाने के लिए

अजीब बात तो ये है, जीते जी तनहा रहा उम्र भर
मर गया तो भीड़ आ गयी दफ़नाने के लिए

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6 JAN AT 0:55

धीरे धीरे मेरा होंसला टूटता जा रहा है
हर उम्मीद का दिया भुजता जा रहा है
मंज़िलों से फासला मेरा बढ़ता जा रहा है
ये अकेलापन मुझे खा रहा है

पुरानी यादों की आग मैं मन झुलसता जा रहा है
अधूरे ख्वाब अनकहे जज़्बात नींदें उड़ा रहा है
कल का डर मेरे आज को मिटा रहा है
ये अकेलापन मुझे खा रहा है

ये तन्हाई का कैसे शोर मेरे ज़हन मैं गूंजता जा रहा है
जिस्म की कब्र मैं मेरी रूह धीरे धीरे दफना रहा है
ये अकेलापन मुझे खा रहा है

अब जीते नहीं सिर्फ सांस लेते है
ये वक़्त का पहिया बेफज़ूल ही घूमता जा रहा है
ये अकेलापन मुझे खा रहा है

एक पुराने खत मे लिपटा वो मुरझाया हुआ गुलाब
अब भी कमरे को महका रहा है
ये अकेलापन मुझे खा रहा है

वो झूठी हॅसी जो आँखों तक नहीं पहुँचती
वो आंसूं जो आंख मैं आकर भी नहीं टपकता
इन खिलोने से अब मन नहीं बहल पा रहा है
ये अकेलापन मुझे खा रहा है

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