Shalabh Gupta   (शलभ की कलम से ✍️)
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Joined 1 August 2019


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11 JUN AT 21:25

आज,
अख़बार,
नहीं आया,
घर पर।
सच,
बहुत,
सकून रहा,
दिन भर।

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10 MAY 2024 AT 12:07

मेहंदी उसने हाथों में रचाई है,
और निखरे - निखरे हम हैं।
फूल उसने गेसू में लगाए हैं,
और महके - महके हम हैं।

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24 MAR 2024 AT 13:43

नकली बाजार के रंग कच्चे सारे,
फूल टेसू के अब कहां खिलते हैं।
रंग दे जो मन को इस दुनिया में,
ऐसे लोग हमें अब कहां मिलते हैं।

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18 FEB 2024 AT 11:52

जिंदगी की,
नौकरी में,
कुछ दर्द,
संविदा पर,
मिले थे मुझे।
कुछ इस तरह,
मेरा साथ,
भाने लगा उन्हें।
धीरे धीरे,
वो दर्द सारे,
permanent हो गए।
सच्चे दोस्त की तरह,
छोड़कर अब,
जाते नहीं मुझे।

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17 FEB 2024 AT 20:46

बातें नहीं करता हूं,
अब तुमसे,
तो क्या..
व्हाट्स एप के,
स्टेट्स पर,
गाने तो आज भी,
तुम्हारी पसंद के ही,
लगाता हूं मैं 💕
अकेले होकर भी,
तन्हा नहीं,
रहता हूं मैं।
पांच मिनट के,
उस गाने में फिर,
मीलों तुम्हारे साथ,
चलता हूं मैं।

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7 FEB 2024 AT 12:51

जिन्दगी के सारे गुलाब देकर उसे,
कैक्टस सारे अपने नाम कर लिए।

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28 JAN 2024 AT 20:05

बहुत परेशान करता था,
वो हर दिन मुझे।
धीरे धीरे मैंने,
उसकी अहमियत ही,
कम कर दी जिंदगी से।
मैं उसको भूलने लगा,
फिर सब ठीक होने लगा।
अब मैं सुकून से रहता हूं,
और मेरा "दर्द" परेशान।

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24 JAN 2024 AT 16:27

सीख लिया है मैंने,
घने कोहरे में जीना।
ऐ धूप घर लौट जा,
और ना सता मुझे।

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22 JAN 2024 AT 19:58

आपके राम, हमारे राम।
सबके राम, जय श्री राम।

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2 JAN 2024 AT 20:16

यूं तो,
जिंदगी में,
कई कैलेंडर,
बदल गए।
मगर,
कुछ तारीखें,
आज भी,
संभालकर,
रखी हैं मैंने।

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