Shakti Dubey   (आतिशबाज)
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तुम सन्नाटे में मरती
मैं उसमें जीने वाला,
तुम अमृत की प्यासी,
मैं विष को पीने वाला।
Joined 6 August 2020


तुम सन्नाटे में मरती
मैं उसमें जीने वाला,
तुम अमृत की प्यासी,
मैं विष को पीने वाला।
Joined 6 August 2020
2 FEB 2022 AT 17:43

मैं लिखता हूँ
दर्द
वो हंसती है मुस्कुराती है
मैं लिखता हूं
प्यार वो बुरा मान जाती है

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28 JAN 2022 AT 22:41

जब बहुत दूर तक जाना है
हमको वापिस न आना है

तो फिर कैसा घबराना है

जब क़ातिल ही बन जाना है
बस क़ातिल ही कहलाना है

तो किसको क्या समझाना है।

जब धूप में शरीर तपाना है
गलकर लोहा बन जाना है

तो क्यों प्यार दिखाना है।

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28 JAN 2022 AT 22:30

सज्जनता के रखवाले लोग
कैसे ये मतवाले लोग

उलटी रेखा में दौड़ रहे हैं
सीधी रेखा में पाले लोग।

चुपके से मारे जाते हैं
दीवाने-दिलवाले लोग

फरेब के चंगुल में फँस जाते हैं
ऐसे भोले-भाले लोग

फिर दलदल में धँस जाते हैं
दीपक से उजियाले लोग।

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27 JAN 2022 AT 22:45

देखते देखते डूब जाता है हिमखंड
टूट जाते हैं बांध
किनारों से अलग हो जाता है कगार
लिखते लिखते कागजों पर समंदर
फूट जाता है दरिया
एक चादर ओस की बिछ जाती है
जमीं पर
देखते देखते
खण्डहर बन जाते हैं महल
जमीं में धँस जाती हैं सभ्यताएं
हड़प्पा मोहनजोदड़ो के जैसे
चढ़ जाती है परत
धूल मिट्टी औऱ हरियाली की
लोग ढूंढते हैं पदचिन्हों को
बचे अवशेषों को..?

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27 JAN 2022 AT 22:30

लौट कर वापिस जाने में क्या रखा है
जब सबकों जहन में भुला रखा है

सबको पता है हम गुजरे हैं जिस दौर से
सबने उसमें अपना मकसद छुपा रखा है

नफरत के तीर चुभ रहे हैं सीने में
इतने ग़मो को दिल में दबा रखा है

मौत आयेगी तो एक झटके में ले जायेगी मुझको
ये जानते हुए भी हमने उसे बुला रखा है।

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21 JAN 2022 AT 12:08

अमृत है विष है क्या है जिंदगी
एक सपने के पीछे,साली तबाह है जिंदगी।

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16 JAN 2022 AT 23:06

आधे अधूरे

कभी इस मोड़ पर
कभी उस मोड़ पर
कभी ठहरी रही
कभी निकली छोड़ कर

परछाइयाँ चल रही थी साथ
हर इबाद तोड़ कर

जम रहा था खूनठंड से
नसो को मरोड़ कर
आँखे बंद हो रही थी
बेवक़्त
तेरा ख्याल छोड़ कर।

के नहीं आ सकती
उम्मीदें
तबाही का मंज़र ओढ़ कर।

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15 JAN 2022 AT 11:10

चलो खोजते हैं
जो छिपा है ढका है
कहीं पे रुका है
बहार के इंतजार में
रसद के करार में
उन्हें ढूंढ़ लाते हैं
और
फिर
बुलाते हैं उन्हें
जो रूक गये थे चलते चलते
थम गये थे मिलते जुलते
फँस गये थे भंवर में
सुलझी हुई डगर में
से खींच लाते हैं उन्हें
और फिर
बुलाते हैं उन्हें
जो न सो रहे हैं
न जाग रहे हैं
फिर भी कही भाग रहे हैं
थक गए हैं
इस जीवन में
अपने सपनों के पीछे पीछे
चलो उनका साहस बढ़ाते हैं
चलो उन्हें बुलाते हैं।

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12 JAN 2022 AT 6:56

रूप सुहावन कर जाता है
मन में साहस भर जाता है

नाम जो सुन ले तर जाता है
ऐसा जादू कर जाता है

धीरे धीरे बूँद बूँद से
हृदय प्रेम से भर जाता है

फिर तेरे दीदार को साहिल
बिन मारे ही मर जाता है

अनायास ही बैठे-बैठे
काम बहुत कुछ कर जाता है

माशाअल्लाह रूप सुहावन
कैसा जादू कर जाता है।

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11 JAN 2022 AT 22:34

टूट गया दिल
अलग हो गये रास्ते

छोड़ दिया साथ
बिना दिए कोई वास्ते

न बन सके किसी के
न ही मकबूल हो पाये

दो हमराही
आखिर कितनी दूर आये।

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